Highly Dangerous Graha Yoga

ज्योतिष में ऊपरी बाधा योग और उपाय

ज्योतिष में ऊपरी बाधा योग और उपाय : ऊपरी बाधा योग : हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं । इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधा योग की संज्ञा देते हैं । भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन ऊपरी बाधा योग के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं । यहां ऊपरी बाधाओं के कुछ ऐसे ही प्रमुख योगों तथा उनसे बचाव के उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है ।

* लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि हों, तो जातक को ऊपरी बाधा योग के कारण प्रेत प्रदत्त पीड़ा होती है ।
* चंद्र पाप ग्रह से दृष्ट हो, शनि सप्तम में हो तथा कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो, तो ऊपरी बाधा योग से भूत से पीड़ा होती है ।
* शनि तथा राहु लग्न में हो, तो जातक को भूत सताता है ।
* लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है ।
* यदि दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस स्थिति में भी ऊपरी बाधा योग होता है ।
उक्त ऊपरी बाधा योग के जातकों के आचरण और व्यवहार में बदलाव आने लगता है । ऐसे में उन योगों के दुष्प्रभावों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए ।
@ संकट निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा……..न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं ।
@ दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी ।
@ शक्ति तथा सफलता की प्राप्ति हेतु ग्यारहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक सृष्टि स्थिति विनाशानां……का उच्चारण करते हुए घी की आहुतियां दें ।
@ शत्रु शमन हेतु सरसों, काली मिर्च, दालचीनी तथा जायफल की हवि देकर अध्याय के उनचालीसवें श्लोक का संपुटित प्रयोग तथा हवन कराएं ।
ऊपरी बाधा योग केलिए कुछ अन्य उपाय : * महामृत्युंजय मंत्र का विधिवत् अनुष्ठान कराएं । जप के पश्चात् हवन अवश्य कराएं ।
* महाकाली या भद्रकाली माता के मंत्रानुष्ठान कराएं और कार्यस्थल या घर पर हवन कराएं ।
* गुग्गुल का धूप देते हुए हनुमान चालीस तथा बजरंग बाण का पाठ करें ।
* उग्र देवी या देवता के मंदिर में नियमित श्रमदान करें, सेवाएं दें तथा साफ सफाई करें ।
* यदि घर के छोटे बच्चे पीड़ित हों, तो मोर पंख को पूरा जलाकर उसकी राख बना लें और उस राख से बच्चे को नियमित रूप से तिलक लगाएं तथा थोड़ी-सी राख चटा दें ।
घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें :

सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं । वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें । फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें । फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें । पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी ।

व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार की समस्या हो, तो वहां श्वेतार्क गणपति तथा एकाक्षी श्रीफल की स्थापना करें । फिर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करें तथा सप्ताह में एक बार मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को बांटें । भोग नित्य प्रति भी लगा सकते हैं ।
कामण प्रयोगों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए दक्षिणावर्ती शंखों के जोड़े की स्थापना करें तथा इनमें जल भर कर सर्वत्र छिड़कते रहें ।
हानि से बचाव तथा लाभ एवं बरकत के लिए गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिंदूर, कपूर, घी, चीनी और शहद के मिश्रण से अष्टगंध बनाकर उसकी स्याही से नीचे चित्रित पंचदशी यंत्र बनाएं तथा देवी के 108 नामों को लिखकर पाठ करें ।
बाधा मुक्ति के लिए : किसी भी प्रकार की बाधा से मुक्ति के लिए मत्स्य यंत्र से युक्त बाधामुक्ति यंत्र की स्थापना कर उसका नियमित रूप से पूजन-दर्शन करें ।
अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए : यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे- बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अपने बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें । ध्यान रहे, यह प्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है ।
रुद्राक्ष या स्फटिक की माला के प्रयोगों से प्रतिकूल परिस्थितियों का शमन होता है । इसके अतिरिक्त स्फटिक की माला पहनने से तनाव दूर होता है ।

पिशाच योग क्या है ?

पिशाच योग क्या है ?

पिशाच योग : जन्मकुंडली में सैकड़ों तरह के योग होते हैं उनमें से एक योग पिशाच योग कहलाता है जो कि राहु के कारण उत्पन्न होता है । पिशाच योग राहु द्वारा निर्मित योगों में यह नीच योग है ।पिशाच योग जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में होता है वह प्रेत बाधा का शिकार आसानी से हो जाता है । इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है । इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है, ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं । इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है । कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं ।

आइए जानते हैं पिशाच योग कैसे बनता है –
• किसी कुंडली में राहू या केतु सप्तम भाव में होने पर जीवन में पिशाच बाधा होने की कभी संभावना बन सकती है ।
• किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न में राहू ग्रस्त चन्द्रमा होने और पंचम और नवंम में पापग्रस्त शनि और मंगल होने पर पिशाच बाधा हो सकती है ।
• लग्न में शनि-राहू युति कभी पिशाच बाधा दे सकती है ।
• लग्न में केतु किसी भी पापी ग्रह से युत या दृष्ट होने पर पिशाच बाधा दे सकता है ।
• लग्न में शुक्र हो और सप्तम भाव में शनि हो और किसी भी स्थान में पापी ग्रह दृष्ट चंद्र होने से भूत -प्रेत -पिशाच बाधा योग बनता है ।
• शनि से युक्त चन्द्रमा अष्टम भाव में होने पर पिशाच बाधा योग उत्पन्न करता है ।
• किसी भी पाप ग्रह से चन्द्रमा छठे भाव में हो और सप्तम भाव में राहू या केतु हो तो ऐसे जातक को पिशाच बाधा योग बनता है ।
• यदि किसी जातक की कुंडली में शनि-राहू द्वितीय भाव में हो तो पिशाच बाधा कभी दे सकते है ।
• छठे भाव के पाप दृष्ट राहू या केतु पिशाच बाधा दे सकते है ।
• अष्टम का क्षीण चन्द्रमा मंगल राहू युत हो तो पिशाच बाधा की संभावना उत्पन्न हो सकती है ।
• लग्न में बुध -केतु पापी ग्रह से दृष्ट हो तो पिशाच बाधा दे सकते है । यदि आपकी कुंडली में पिशाच योग है तो आप ज्योतिष परामर्श प्राप्त कर इसका समाधान प्राप्त कर सकते हैं इस लेख के साथ उपाय इसलिए नहीं बताया गया है कि कुंडली में किस कारण से पिशाच योग बना है और उससे नुकसान की कितनी संभावना है उसका आकलन करने के बाद ही उपाय संभव है ।

जातक का भविष्य और गण्ड मूल योग

जातक का भविष्य और गण्ड मूल योग :
गण्ड मूल योग को शास्त्रों में गण्डान्त की संज्ञा प्रदान की गई है । यह एक संस्कृत भाषा का शब्द है गण्ड का अर्थ निकृष्ट से है एवं तिथि लग्न व नक्षत्र का कुछ भाग गण्डान्त कहलाता है । मूलत: अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल व रेबती ये छः नक्षत्र गण्डमूल कहे जाते हैं । इनमें चरण विशेष में जन्म होने पर भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते है । इन नक्षत्र चरणों में यदि किसी जातक का जन्म हुआ हो तो, जन्म से 27वें दिन में जब पुनः वही नक्षत्र आ जाता है तब विधि विधान पूर्वक पूजन एवं हवनादि के माध्यम से गण्ड मूल योग की शान्ति कराई जाती है ।

क्या है गण्ड मूल योग : तिथि गन्डान्त- पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है । प्रतिपद, षष्ठी व एकादशी तिथि की प्रारम्भ की एक घड़ी अर्थात प्रारम्भिक 24 मिनट एवं पूर्णिमा, पंचमी व दशमी तिथि की अन्त की एक घड़ी, तिथि गन्डान्त कहलाता है ।

नक्षत्र गण्डान्त- इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है । इसी तरह से लग्न गंडांत होता है । खेती, ज्येष्ठा व अश्लेषा नक्षत्र की अन्त की दो दो घडि़यां अर्थात 48 मिनट अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की दो दो घडि़यां, नक्षत्र गण्डान्त कहलाती है ।

लग्न गण्डान्त- मीन लग्न के अन्त की आधी घड़ी, कर्क लग्न के अंत व सिंह लग्न के प्रारम्भ की आधी घड़ी, वृश्चिक लग्न के अन्त एवं धनु लग्न की आधी-आधी घड़ी, लग्न गण्डान्त कहलाती है । अर्थात मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है । मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है । इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है । यदि किसी जातक का जन्म उक्त गण्ड मूल योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए ।

क्या होता है गण्ड मूल योग में जन्मे जातक का भविष्य : ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है । आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं । अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है । मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है । चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है ।

गण्ड मूल योग के उपाय : गण्ड मूल योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो । इस गण्ड मूल योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें । गंडांत योग को संतान जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है । इस गण्ड मूल योग में संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को शिशु का मुख देखना चाहिए । पराशर मुनि के अनुसार तिथि गण्ड में बैल का दान, नक्षत्र गण्ड में गाय का दान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोष मिटता है । संतान का जन्म अगर गण्डान्त पूर्व में हुआ है तो पिता और शिशु का अभिषेक करने से और गण्डान्त के अंतिम भाग में जन्म लेने पर माता एवं शिशु का अभिषेक कराने से दोष कटता है ।

ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है ।

पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है । फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि- दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि । जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।। अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए । नोट : जो व्यक्ति अपने कर्म शुद्ध रखते हुए प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ता रहता है तो यह सबसे बड़ा उपाय है ।

कुण्डली के अशुभ योगों की शांति कैसे करें ?

कुण्डली के अशुभ योगों की शांति कैसे करें ?
1) कुण्डली में चांडाल योग : गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है, तथा अभद्र भाषाका प्रयोग करता है । यह जातक पेट और श्वास के रोगों सेपीड़ित हो सकता है ।

2) सूर्य ग्रहण योग : कुण्डली में सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक को हड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिताका सुख कम होता है ।
3) चंद्र ग्रहण योग : कुण्डली में चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानि पोहोंचति है ।
4) श्रापित योग : कुण्डली में शनि के साथ राहु हो तो दरिद्री योग होता है सवा लाख महा मृत्युंजय जाप करें ।
5) पितृदोष : यदि कुण्डली में 2, 5, 9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है ।
6) नागदोष : यदि कुण्डली में 5 भाव में राहु बिराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ साथ नागदोष भी है ।
7) ज्वलन योग : यदि कुण्डली में सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग (अंगारक योग) से पीड़ित होता है ।
8) अंगारक योग : यदि कुण्डली में मंगल के साथ राहु या केतु बिराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है ।
9) यदि कुण्डली में सूर्य के साथ चंद्र हो तो जातक अमावस्या का जना है (अमावस्या शान्ति करें) ।
10) यदि कुण्डली में शनि के साथ बुध = प्रेत दोष
11) शनि के साथ केतु = पिशाच योग
12) केमद्रुम योग : चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगेपीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले ही करना पड़ता है ।

13) शनि + चंद्र : विषयोग शान्ति करें ।
14) एक नक्षत्र जनन शान्ति –घर के किसी दो व्यक्तियों का एक ही नक्षत्र हो तो उसकी शान्ति करें ।
15) त्रिक प्रसव शान्ति : तीन लड़की केबाद लड़का या तीन लड़कों के बाद लड़की का जनम हो तो वह जातक सभी पर भारी होता है ।
16) कुम्भ विवाह : लड़की के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु ।
17) अर्क विवाह : लड़के के विवाह में अड़चन या वैधव्य योग दूर करने हेतु ।
18) अमावस जन्म : अमावस के जनम के सिवा कृष्णचतुर्दशी या प्रतिपदा युक्त अमावस्या जन्म हो तोभी शान्ति करें ।
19) यमल जनन शान्ति : जुड़वा बच्चों की शान्ति करें ।
20) पंचांग के 27 योगों में से 9 अशुभ योग
1.विष्कुंभ योग
2.अतिगंड योग
3.शुल योग
4.गंड योग
5.व्याघात योग
6.वज्र योग

7.व्यतीपात योग
8.परिघ योग
9.वैधृती योग
21) पंचांग के 11करणों में से 5 अशुभ करण
1.विष्टी करण
2.किंस्तुघ्न करण
3.नाग करण
4.चतुष्पाद करण
5.शकुनी करण
22) शुभाशुभ नक्षत्र
प्रत्येक की अलग अलग संख्या उनके चरणों को संबोधित करती है . जानिये नक्षत्र जिनकी शान्ति करना जरुरी है …
1) अश्विनी का- पहला चरण अशुभ है ।
2) भरणी का – तिसरा चरण अशुभ है ।
3) कृतीका का – तीसरा चरण अशुभहै ।
4) रोहीणी का पहला, दूसरा और तीसरा चरण अशुभ है ।
5) आर्द्रा का – चौथा चरण अशुभ है।
6) पुष्य नक्षत्र का – दूसरा और तीसरा चरण अशुभ है ।
7) आश्लेषा के- चारों चरण अशुभ है ।
8) मघा का- पहला और तीसरा चरण अशुभ है ।
9) पूर्वाफाल्गुनी का- चौथा चरण अशुभ है ।
10) उत्तराफाल्गुनी का- पहला और चौथा चरण अशुभ है ।
11) हस्त का- तीसरा चरण अशुभ है ।
12) चित्रा के-चारों चरण अशुभ है ।
13) विशाखा के -चारों चरण अशुभ है ।
14) ज्येष्ठा के -चारों चरण अशुभ है ।
15) मूल के -चारों चरण अशुभ है ।
16) पूर्वषाढा का- तीसरा चरण अशुभ है ।
17) पूर्वभाद्रपदा का- चौथा चरण अशुभ है ।
18) रेवती का – चौथा चरण अशुभ है ।
शुभ नक्षत्र की उनके चरण अनुसार शान्ति करने की आवश्यकता नहीं है । 1) अभीजीत – चारों चरण शुभहै ।
2) उत्तरभाद्रपदा- चारों चरण शुभ है ।
3) शतभिषा – चारों चरण शुभ है ।
4) धनिष्ठा- चारों चरण शुभ है ।
5) श्रवण- चारों चरण शुभ है ।
6) उत्तरषाढा- चारों चरण शुभ है ।
7) अनुराधा- चारों चरण शुभ है ।
8) स्वाति- चारों चरण शुभ है ।
9) पुनर्वसु- चारों चरण शुभ है ।
10) मृगशीर्ष- चारों चरण शुभ है ।
11) रेवती के – पहले, दूसरे और तीसरे चरण शुभ है ।
12) पूर्व भाद्रपदा का -पहला, दूसरा और तीसरा चरण शुभ है ।
13) पूर्वषाढा का – पहला, दूसरा और चौथा चरण शुभ है ।
14) हस्त नक्षत्र का- पहला, दूसरा और चौथा चरण शुभ है ।
15) उत्तरा फाल्गुनी का- दूसरा और तीसरा चरण शुभ है ।
16) पूर्व फाल्गुनी का- पहला, दूसरा और तीसरा चरण शुभ है ।
17) मघा का – दूसरा और चौथाचरण शुभ है ।
18) पुष्य का – पहला और चौथाचरण शुभ है ।
19) आर्द्रा का – पहला, दूसरा औरतीसरा चरण शुभ है ।
20) रोहिणी का- चौथा चरण शुभ है ।

जन्म कुण्डली में स्थित शत्रु एवं रोग योग की विवेचन एवं फलादेश

जन्म कुण्डली में स्थित शत्रु एवं रोग योग की विवेचन एवं फलादेश : जन्म कुण्डली में स्थित छठे भाव से किसी जातक के शत्रु एवं रोग का विवेचन ज्योतिषाचार्यों द्वारा किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्म कुण्डली के छठे भाव का फलादेश निम्न प्रकार से है –

♦ यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली में अष्टमेश लग्न में स्थित हो तो, ऐसे जातक का शरीर रोगों से आक्रांत रहता है ।
♦ यदि जन्म कुण्डली में छठे भाव का स्वामी ग्रह लग्न में स्थित हो तो, ऐसे जातक को उसके ही परिजन एवं मित्रगण हानि व बाधा पहुँचाते हैं एवं ऐसा जातक रोगों से भी बाधित रहता है ।
♦ यदि जन्म कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, सूर्य ग्रह के साथ युग्म में हों, तो ऐसा जातक ज्वर रोग से पीडि़त रहने वाला होता है ।
♦ यदि जन्म कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, चन्द्रमा ग्रह के साथ युग्म में हों, तो ऐसे जातक को जल से भय रहता है ।
♦ यदि जन्म कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, मंगल ग्रह से किसी भी प्रकार से सम्बंधित हो, तो ऐसे जातक को शस्त्र से आघात, घाव, व्रण, ग्रन्थि सम्बंधित रोग व विकार एवं प्लेग आदि से ग्रसित होने का भय रहता है ।
♦ यदि जन्म कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, बुध ग्रह के साथ युग्म में हों, तो ऐसा जातक पित्त रोगी होता है ।
♦ यदि जन्म कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, बृहस्पति ग्रह के साथ, युग्म में हों, तो ऐसा जातक स्वस्थ काया वाला होता है, उसे सरलता से कोई रोग पकड़ नहीं पाता है ।
♦ यदि कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, शुक्र ग्रह के साथ युग्म में हों, तो ऐसा जातक अपनी स्त्री के स्वास्थ्य के प्रति चिंतित रहने वाला होता है ।
♦ यदि कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, शनि ग्रह के साथ युग्म में हों, तो ऐसे जातक को चोरों एवं चाण्डालों से भय रहता है ।
♦ यदि कुण्डली में पहले एवं छठे भाव का स्वामी ग्रह, राहु अथवा केतु से किसी भी प्रकार से सम्बंधित हो, तो ऐसे जातक को सर्प, व्याघ्र आदि से भय रहता है ।
♦ यदि कुण्डली में छठे भाव का स्वामी ग्रह, किसी भी नीच अथवा पापी ग्रह के साथ बारहवें भाव में स्थित हो एवं लग्न का स्वामी ग्रह बलवान हो, तो ऐसे जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है ।
♦ यदि कुण्डली में छठे भाव का स्वामी ग्रह, लग्न भाव के स्वामी ग्रह से कमजोर हो एवं छठे भाव के स्वामी ग्रह शुभ ग्रहों से सम्बंधित हो, तो ऐसे जातक के शत्रु भी उसके साथ मित्र भाव रखने वाले होते हैं ।