Das Mahavidya

महाकाली शाबर मंत्र सिद्धि साधना

Mahakaali Shabar Mantra Siddhi Sadhna : महाकाली , माँ दुर्गा का ही प्रचंड रूप है जिनका जन्म धर्म की रक्षा करने के लिए और पापियों और दुष्टों का नाश करने के लिए हुआ है । महाकाली – महा और काली जिसका अर्थ है काल और समय भी इसके अधीन है । माँ काली को माँ दुर्गा की 10 महाविद्याओं में से एक माना गया है । दिखाई देने में जिस प्रकार माँ काली जितनी प्रचंड दिखती है अपने भक्तों पर उतनी ही जल्दी कृपा भी करती है ।

हनुमान जी , भैरव जी और महाकाली इन तीनों शक्तियों को कलियुग में जागृत माना गया है । अर्थात थोड़े से भक्ति भाव से ये प्रसन्न होकर अपने भक्तो का उद्धार करते है । महाकाली शाबर मंत्र (Mahakaali Shabar Mantra) की उपासना करने से जीवन में सुख -शांति , शक्ति व बुद्धि का विकास होता है । इसके साथ -साथ सभी प्रकार के भय आदि से मुक्ति भी मिलती है । माँ काली की उपसना करने वाले व्यक्ति को उनकी पूजा विधिवत करनी चाहिए और यदि किसी भी प्रकार का आपने यदि संकल्प लिया हुआ है तो कार्य पूर्ण होने पर उसे पूरा अवश्य करें अन्यथा माँ काली रुष्ट भी जो जाती है और उनका प्रकोप भी झेलना पड़ सकता है ।

Mahakaali Shabar Mantra :
आज हम आपको महाकाली शाबर मंत्र (Mahakaali Shabar Mantra) के विषय में बता रहे है जिसके प्रयोग से महाकाली शीघ्र प्रसन्न होती है । आप किसी भी मनोकामना पूर्ती हेतु इस महाकाली शाबर मंत्र को सिद्ध कर सकते है । मंत्र इस प्रकार है : –
“ॐ काली घाटे काली माँ ।
पतित पावनी काली माँ ।
जवा फूले ।
स्थुरी जले ।
सेई जवा फूल में सीआ बेड़ाए ।
देवीर अनुर्बले ।
एहि होत करिवजा होइवे ।
ताही काली धर्मेर ।
वले काहार आज्ञे राठे ।
काली का चंडीर आसे । ।”

Mahakaali Shabar Mantra Siddh Karne Ki Vidhi : वैसे तो शाबर मंत्र अपने आप में सिद्ध मंत्र होते है किन्तु इन मन्त्रों में प्रबलता लाने के लिए और अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए कुछ जाप करने जरुरी होते है ।

शनिवार शाम को 7 से 10 के बीच में कोई एक समय निश्चित कर ले और आसन बिछाकर पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाये । अब आप हाथ में थोडा जल लेकर संकल्प ले ।

अपने साथ में एक गोला (पका हुआ नारियल ) इसे छोटे- छोटे टुकडो में तोड़ ले । एक मिटटी का खुला बर्तन जैसे की मटके का ढक्कन या इससे बड़ा हो तो भी उचित होगा पर मिटटी का होने चाहिए । अब एक गाय के गोबर के उपले (कंडा ) को भी अपने पास में रख ले । थोड़ी मात्रा में जलने वाला कपूर और घी रखे । अब आप अपनी क्षमता अनुसार जितने भी मंत्र जाप कर सकते है उनकी संख्या निश्चित कर उतनी संख्या के बराबर आधे लोंग और आधे इलाइची लेकर रख ले ।

अब आप गोबर के उपलों (कंडो ) द्वारा मिटटी के बर्तन में कपूर की सहायता से अग्नि प्रज्वलित करें । अब आप मंत्र का जाप आरम्भ कर दे और प्रत्येक मंत्र के बाद आप एक लोंग या एक इलाइची अग्नि में डाल दे । थोड़े -थोड़े समय पश्चात् घी और नारियल का गोला जिसके छोटे छोटे टुकड़े किये है उन्हें भी डालते रहे । घी और गोले को आपको प्रत्येक मंत्र के बाद अग्नि में डालने की आवश्यकता नही है , यह सिर्फ इसलिए है कि अग्नि लगातार प्रज्वलित होती रहे ।

इस प्रकार आप प्रत्येक मंत्र के बाद एक लोंग या इलाइची को अग्नि में छोड़ते चले जाये । आपको किसी प्रकार के दीपक जलाने या माला लेने की आवश्यकता नही है । बस आप दी गयी विधि अनुसार मंत्र जाप करते जाये । जैसे ही आप अपने मंत्र जाप पूरे करते है अब आप फिर से हाथ में जल लेकर फिर से संकल्प ले ।

इस क्रिया को आप शनिवार को शुरू कर 7 शनिवार तक प्रतिदिन करें । इस प्रकार 7 शनिवार तक इस प्रकार करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है । अब आप किसी भी मनोकामना पूर्ती हेतु इस मंत्र का प्रयोग कर सकते है । आप अपने कार्य में अवश्य सफल होंगे ।

Mahakaali Shabar Mantra Prayog Vidhi : इस महाकाली शाबर मंत्र (Mahakaali Shabar Mantra) को सिद्ध करने के पश्चात आप जिस मनोकामना को माँ काली द्वारा पूर्ण करवाना चाहते है उसे मन ही मन ध्यान में रखते हुए इस महाकाली शाबर मंत्र (Mahakaali Shabar Mantra) को तीन बार जाप करें और अपनी दाहिनी हथेली पर फूंक लगाये । आपकी मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण होगी ।

शाबर महाकाली साधना मंत्र

Shabar Mahakali Sadhana Mantra :
मंत्र सिद्ध है फिर भी मन मे येसा कुछ ना आये के मुज़े अनुभव कैसे मिलेगा ईसलिये किसी भी मंगलवार के दिन शाम को 6:30 से 7:30 के समय मे शाबर महाकाली साधना मंत्र (Shabar Mahakali Sadhana Mantra) का 108 बार जाप कर लिजिये और 21 आहुती घी का दे , साथ मे एक नींबू मंत्र का जाप करके चाकू से काटे तो बलि विधान भी पूर्ण हो जायेगा, नींबू को हवन कुंड मे डालना ना भूले ।
अब जब भी आपको अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु विधान करना हो तब जमीन पर थोडासा कुछ बुंद जल डाले और हाथ से जमीन को पौछ लिजिये । साफ़ जमीन पर कपूर कि टिकिया रखे और मन ही मन अपनी कामना बोलिये । अब तीन बार “ओम नम: शिवाय” बोलकर कपूर जलाये और महाकाली मंत्र का जाप करे, यहा पर मंत्र जाप संख्या का गिनती नही करना है और जाप करते समय ध्यान कपूर के ज्योत मे होना चाहिये इसलिये मंत्र भी पहिले ही याद करना जरुरी है । कम से कम 3-4 टिकिया कपूर का इस्तेमाल करे और कपूर इस क्रिया मे बुज़ना नही चाहिये जब तक आपका जाप पूर्ण ना हो और इतने समय तक जाप करे अन्दाज से के आपका 21 बार मंत्र जाप होना चाहिये । अब आपही सोचिये आपको रोज कितना कपूर जलाना है । शाबर महाकाली साधना मंत्र (Shabar Mahakali Sadhana Mantra) तब तक करना है जब तक आपका इच्छा पूर्ण ना हो और इच्छा पूर्ण होने के बाद कुछ गरिब बच्चो मे कुछ मिठा बाटे क्युके इच्छा पूर्ण होने के खुशी मे…

Shabar Mahakali Sadhana Mantra :
।। ओम नमो आदेश माता-पिता-गुरू को । आदेश कालिका माता को,धरती माता-आकाश पिता को । ज्योत पर ज्योत चढाऊ ज्योत कालिका माता को,मन की इच्छा पुरन कर,सिद्धी कारका । दुहाई माहादेव कि ।।

डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साबर मंत्र

Dakini Pratyakshikaran Shabar Mantra :
तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है, यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है । यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है । यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है । यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं । इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है । जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं । तंत्र में डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) की साधना स्वतंत्र रूप से होती है और यदि डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि करना आसान हो जाता है ।

काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि, काली या डाकिनी

प्रत्यक्षीकरण सिद्धी (Dakini Pratyakshikaran Siddhi) से अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध किया जा सकता हैं फीर उसके लीये कठीन साधना करने की जरूरत नही होती । कम प्रयासों में ही डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धी (Dakini Pratyakshikaran Siddhi) प्राप्त हो जाती है, इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है । डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है, हमारे अन्दर क्रूरता, क्रोध, अतिशय हिंसात्मक भाव, नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति के तरंगों से होती है । डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) की सिद्धि या शक्ति से भूत-भविष्य-वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है । किसी को नियंत्रित करने की क्षमता, वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है । यह शक्ति साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी करती है । यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है ।

इसका स्वरुप अति उग्र हो जाता है । इस रूप में माधुर्य, कोमलताका अभाव होता है, डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धि के समय यह पहले साधक की ये बहुत परीक्षा लेती है, साधक को हर तरीके से आजमाती है, उसे डराती भी है । फिर तरह तरह के मोहक रूपों में साधक को भोग के लिए प्रेरित करती है, यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है इसलिए बिना रक्षा कवच धारण किये डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साधना ना करे । इसके भय और प्रलोभन से साधक बच गया तो डाकिनी प्रत्यक्षीकरण सिद्धि (Dakini Pratyakshikaran Siddhi) का मार्ग आसान हो जाता है । मस्तिष्क को शून्य कर के या पूर्ण विवेक को त्यागकर निर्मल भाव में डूबकर ही डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साधना पुर्ण किया जा सकता है । डाकिनी और काली में व्यावहारिक अंतर है, जबकि यह शक्ति काली के अंतर्गत ही आती है । इस शक्ति को जगाना अति आवश्यक है , जबकि काली एक जाग्रत देवी शक्ति हैं । डाकिनी प्रत्यक्षीकरण (Dakini Pratyakshikaran) की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्ज होता है । तंत्र में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है ।

यह डाकिनी प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है । इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है ,यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है । इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है । यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक का मार्ग आसान हो जाता है । यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर वह शक्ति साधक को ख़त्म कर देती है , यह भूत-प्रेत- पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है । यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो जाती है । इसके आसक्त होने पर सब काम रुक जाता है और उसका विनास होने लगता है । इसका स्वरुप एक सुन्दर, गौरवर्णीय, तीखे नाकनक्शे वाली युवती की जैसी होती है । जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है ।

काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना, विचरण और प्रभाव का विवरण ग्रंथो में मिलता है । इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है । इसको नष्ट नहीं किया जा सकता, यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है । जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी , इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता , अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है । सामान्यतया यह नदी-सरोवर के किनारों, घाटों, शमशानों, तंत्र पीठों, एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर हैं । इस में मंत्र जाप हेतु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करे,काला आसन हो और मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए ।

Dakini Pratyakshikaran Shabar Mantra : मन्त्र: ।। ॐ नमो आदेश गुरु को स्यार की ख़वासिनी समंदर पार धाइ आव, बैठी हो तो आव-ठाडी हो तो ठाडी आव-जलती आ-उछलती आ न आये डाकनी,तो जालंधर बाबा कि आन शब्द साँचा पिंड कांचा फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा छू ।।

Dakini Pratyakshikaran Vidhi : यह एक प्रत्यक्षीकरण की साधना है ,किसी एकांत स्थान पर जहां चौराहा हो वहां पर रात के समय कुछ मास मदिरा व मिट्टी क दीपक, सरसों का तेल व सरसों लेकर जाय । काले आसन पर बैठकर नग्न होकर मन्त्र का ११ माला जप करें, सरसों के तेल का दीपक जला कर रख लें । अब हाथ में सरसों लेकर मन्त्र पढ़कर चारोँ दिशाओं में फेंक दें और दोबारा से मन्त्र जपना आरम्भ करें, मन में संकल्प रखें कि डाकिनी शीघ्र आकर दर्शन दे तो कुछ हि देर में दौडती-चिल्लाती और उछलती डाकनियां आ जायेँगी,उनको शराब और मास प्रदान करना है और जो भी मन मे हो वह मनोवांछित कार्य उनको बोल देना है,कार्य तुरंत पूर्ण होता है ।

प्रचण्ड चंडिका साधना कैसे करें ?

Prachand Chandika Sadhana Kaise karein ?
“प्रचण्ड चंडिका साधना (Prachand Chandika Sadhana)” श्री भगबती आद्याशक्ति पार्बती का ही एक रूप है । इन्हें “छिन्मस्ता” भी कहा जाता है । दश महा बिद्याओं के अंतर्गत प्रचण्ड चंडिका साधना (Prachand Chandika Sadhana) की भी गणना की जाती है ।

“बिश्वस्सर” एबं “रुद्रयामल तंत्र” में प्रचण्ड चंडिका साधना के अनेक मन्त्रों का उल्लेख पाया जाता है उनमे कुच्छ निम्नांनुसार हैं –
(१) “श्रीं क्लीं ह्रीं ऐ बज्रबैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।” यह षोडशाक्षर मंत्र सब कार्यो में मंगलदायक है ।
(२) “क्लीं श्रीं ह्रीं ऐ बज्रबैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।” यह मंत्र स्त्रियों को बश में करने बाला है ।
(३) “ह्रीं श्रीं क्लीं ऐ बज्रबैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।” यह मंत्र समस्त पापों को नष्ट करने बाला है ।
(४) “ऐ श्रीं क्लीं ह्रीं बज्रबैरोचनीये हुं हुं फट् स्वाहा ।।” यह मंत्र मुक्ति को देने बाला है ।
Prachand Chandika Sadhana Puja Vidhi : सर्बप्रथम प्रात: कृत्यादि करके सामान्य पूजा पद्धति के अनुसार आचमन करें । “श्रीं ह्रीं हुं” इन तीनों मन्त्रों से 3 बार जलपान करके “ऐ” मंत्र से दोनों होठों का मार्जन कर, “ह्रीं ह्रीं” इस मंत्र से तीन बार फिर मार्जन करना चाहिए ।
आचमन के उपरान्त प्राणायाम तक सब क्रियाएँ करके षोढान्यास करना चाहिए । फिर रुष्यादिन्यास एबं करांगन्यास करके मूल मंत्र द्वारा मस्तक से चरणों तक तथा चरणों से मस्तक तक तीन बार ब्यापक न्यास करके ध्यान करना चाहिए ।
ध्यान के पश्चात् यंत्र निर्माण कर देबी का पूजन करना उचित है । मंत्र लेखनोपरांत पीठ पूजा, पुनबरि ध्यान तथा आबाहन करके, प्रतिष्ठा के मंत्र से प्राणप्रतिष्ठा करें । फिर बलि- प्रदान तथा षडंगपूजा के पश्चात् बिसर्जनान्त तक सब कर्मो को यथाबिधि समाप्त कर देबी का बिसर्जन करें ।
बिसर्जन का मंत्र इस प्रकार हैं – “उत्तरे शिखरे देबि भुभ्यां पर्बत बासिनि । ब्रह्मयोनि समुत्पन्ने तिष्ठदेबि ममान्तरम् ।।”
इस मंत्र के पुरश्चरण के लिए एक लाख की संख्या में जप करना चाहिए तथा देबता के बलिदान में साधक को अपनी सामर्थ्य के अनुसार मधुरा, मत्स्य, सूरा आदि अनेक भांति के उपहारों द्वारा बली देनी चाहिए ।
छिनमस्ता अर्थात प्रचण्ड चंडिका के साधन से साधक की समस्त मनोकामानाएं पूर्ण होती है ।

त्रिपुरा आकर्षण मंत्र प्रयोग

Tripura Aakarshan Mantra Prayog :
आकर्षण मंत्र : “श्रीं क्लीं ह्रीं ॐ त्रिपुरा देबी अमुकी आकर्षय आकर्षय स्वाहा ।”

इस त्रिपुरा आकर्षण मंत्र (Tripura Aakarshan Mantra) का अयुत (दस हजार) जप करें । रक्त चन्दन और कुंकुम से षट्कोण त्रिपुरा आकर्षण यन्त्र अंकित कर उसका पूजन उक्त मंत्र से करे । लज्जा बीज (ह्रीं) को षड दीर्घ (हां, ह्रीं हूं, हें, ह्रौं, ह: ) स्वरों से युक्त कर अर्थात् ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: इत्यादि से कर षडंगन्यास करें । रक्त पुष्प, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य से पूजन करे । फिर मन ही मन देबी का ध्यान करे ।

यथा –
भाबयामि चेतसा देबीं, त्रिनेत्रा चन्द्रशेखराम् । बालर्ककिरण प्रख्यां, सिंदुरारुण बिग्रहाम् । पद्दं च दक्षिणे पाणौ, जपमालां च बामके ।।
इस त्रिपुरा आकर्षण मंत्र के प्रभाब से रम्भा और उर्वशी को भी निश्चय ही आकृष्ट कर सकते हैं । फिर मानुषी के आकर्षण में क्या आश्चर्य ।
भूज पत्र पर कुंकुम अथबा कस्तूरी, अगुरु और गोरोचन मिश्रित अनामिका रक्त से यह कमलाक्षी मंत्र लिखकर उसी भूज पत्र के ऊपर उक्त मंत्र (Tripura Aakarshan Mantra) का एक सहस्त्र जप करे ।
Tripura Aakarshan Mantra : मंत्र :- “ॐ श्रीं कमलाक्षी अमुकीम् आकर्षय आकर्षय हूं फट्” ।
फिर उस भूज पत्र की गुलिका बनाकर अभीष्ट ब्यक्ति या स्त्री की पैर की मिट्टी से उसे बेष्टित करे । फिर उस मिट्टी लगी गुलिका को धूप में खूब सुखा ले । फिर त्रिकुटू (मरिच, पीपल और सौंठ ) से अभिष्ठ रमणी की प्रतिमा बनाकर उसके पेट में उक्त गुलिका को डाल दे । तदनन्तर उस प्रतिमा को किसी पात्र में स्थापित कर बह रमणी जिस दिशा में हो, उसी दिशा की और मुख करके बैठे और निशा काल में किसी निर्जन स्थान में उक्त “कमलाक्षी मन्त्र” का जप करे । इस प्रकार करने से बह रमणी आकर्षित होकर साधक के समीप आ उपस्थित होगी ।
आज की तारीख में हर कोई किसी न किसी समस्या से जूझ रहा है । हर कोई चाहता है कि इन समस्याओ का समाधान जल्द से जल्द हो जाए, ताकि जिंदगी एक बार फिर से पटरी पर आ सके । आज हम आपको हर समस्या का रामबाण उपाय बताएंगे, जिसे करने के बाद आपकी हर समस्या का समाधान हो जाएगा ।

अद्भूत दरिद्रता नाशक भुवनेश्वरी साधना

Adbhut Daridrta Nashak Bhuvneshwari Sadhana :
अद्भुत दरिद्रता नाशक भुवनेश्वरी साधना (Bhuvneshwari Sadhana) एक प्राचीन तंत्रिक प्रयोग है जो वित्तीय संकट और दरिद्रता को दूर करने में मदद कर सकता है । यह साधना माता भुवनेश्वरी की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है और व्यक्ति को सुख, समृद्धि और आर्थिक स्थिति में सुधार प्राप्त करने में मदद कर सकता है ।
इस साधना (Bhuvneshwari Sadhana) में विशेष मंत्र, मंत्रों की जाप और तंत्रिक क्रियाएं की जाती हैं, जो व्यक्ति के वित्तीय संकट और दरिद्रता को दूर करने में सहायक हो सकते हैं। यह साधना विशेष रूप से वह व्यक्तियों के लिए उपयुक्त हो सकती है जिनके पास आर्थिक समस्याएं हैं और जो वित्तीय स्थिति में सुधार प्राप्त करना चाहते हैं ।

इस साधना को करने से पहले व्यक्ति को अपनी साधना के लिए निर्धारित समय, स्थान और दिशा का पालन करना चाहिए और साधना के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। यह साधना (Bhuvneshwari Sadhana) निष्ठा, समर्पण और मानसिक शुद्धता के साथ की जाती है और व्यक्ति को आर्थिक संकट से मुक्ति प्राप्त करने में मदद कर सकती है ।

चंद्र ग्रहण में किए जाने वाले खास साधना से भुवनेश्वरी साधना एक है । साधना ग्रहण के समय मे ही सिद्ध की जाती है । जिस पर माँ भुवनेश्वरी की कृपा हो जाये,वो कभी दरिद्र नहीं रह सकता,क्युकी माँ कभी अपनी संतान को दुखी नहीं देख सकती है ।

ग्रहण काल में स्नान कर सफ़ेद वस्त्र धारण करे,और उत्तर की और मुख कर सफ़ेद आसन पर बैठ जाये । सामने ज़मीन पर सफ़ेद वस्त्र बिछाये और उस पर,अक्षत से बीज मंत्र ” ह्रीं ” लिखे और उस पर कोई भी एक रुद्राक्ष स्थापित करे,गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे,अब रुद्राक्ष का सामान्य पूजन करे,तथा निम्न मंत्र को २१ बार पड़े और अक्षत अर्पण करते जाये,अक्षत भी २१ बार अर्पण करने होंगे ।

Bhuvneshwari Sadhana Mantra : मंत्र : ।।ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी इहागच्छ इहतिष्ठ इहस्थापय मम सकल दरिद्रय नाशय नाशय ह्रीं ॐ।।
अब पुनः रुद्राक्ष का सामान्य पूजन कर मिठाई का भोग लगाये,तील के तेल का दीपक लगाये।और बिना किसी माला के निम्न मंत्र का लगातार २ घंटे तक जाप करे,जाप करते वक़्त लगातार अक्षत रुद्राक्ष पर अर्पण करते रहे । साधना के बाद भोग स्वयं खा ले,और रुद्राक्ष को स्नान कराकर लाल धागे में पिरो ले और गले में धारण कर ले । और सारे अक्षत उसी वस्त्र में बांध कर कुछ दक्षिणा के साथ देवी मंदिर में रख आये और दरिद्रता नाश की प्रार्थना कर ले । मंत्र : ।।हूं हूं ह्रीं ह्रीं दारिद्रय नाशिनी भुवनेश्वरी ह्रीं ह्रीं हूं हूं फट।।

महात्रिपुर सुन्दरी सिद्धि कैसे प्राप्त करें?

Maha Tripura Sundari Siddhi :
महात्रिपुर सुन्दरी (Maha Tripura Sundari) को “षोडशी” भी कहते है । इसकी साधना के लिए साधक द्वारा साधना कख्य में कुंकुम या सिन्दुर से षोडशी यंत्र लिखा जाता है। इसे भूमि पर बनाकर लाल मिट्टी से पुर्ण करते हैं ।
इसका यंत्र साबधानी से बनाना चाहिए । इसमें बिन्दु, त्रिकोण, अष्टकोण, दो दशकोण, चतुर्दशकोण फिर अष्टदल, षोडशदल पद्म, तीन बृत बनाये जाते हैं । यंत्र बनाने के बाद जप-अनुष्ठान का बिधान है ।

उपबास के बाद इसके दस हजार मंत्रों का जप होता है । इसके मंत्र निम्नलिखित है—
जिस कार्य की सिद्धि या कामनाओं के लिए आप सिद्धि कर रहे हैं, उनके लिए संकल्प करने के बाद न्यास करें। न्यास से पूर्ब बिनियोग कर लेना चाहिए ।
Maha Tripura Sundari Biniyog Mantra : बिनियोग मंत्र : “ॐ अस्य श्री महात्रिपुर सुन्दरी महामंत्रस्य दखिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: श्री महात्रिपुर सुन्दरी देबता ऐं बीज सौं शक्ति: क्लीं कीलकं ममाभीष्टसिद्धयर्थे जपे बिनियोग: ।”
न्यास : दखिणामूर्ति ऋषये नम: शिरसि पंक्तिछ्न्दसे नम: मुखे। श्री महात्रिपुरसुन्दर्यै नम: हृदये। ऐं बीजाय नम: गुहो। सौं शक्तये नम: पादयो। क्लीं कीलकाय नम: नाभौ। बिनियोगाय नम: सर्बागे।
करन्यास इस प्रकार करें— ह्रीं श्रीं अं अंगुष्ठाभ्यां नम: ह्रीं श्रीं आं तर्जनीभ्यां नम: ह्रीं श्रीं सौ: मध्यमाभ्यां नम: ह्रीं श्रीं अं अनामिकाभ्यां नम: ह्रीं श्रीं आं कनिष्ठकाभ्यां नम: ह्रीं श्रीं सौ: करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:
हृदयादि न्यास इस प्रकार करते हैं : ह्रीं श्रीं अं हृदयाय नम: ह्रीं श्रीं आं शिरसे स्वाहा। ह्रीं श्रीं सौ: शिखाये बषट्। ह्रीं श्रीं अं कबचाय हुम्। ह्रीं श्रीं आं नेत्रयाय बौषट्। ह्रीं श्रीं सौ: अस्त्राय फट।
उपर्युक्त न्यासों के बाद ध्यान एकाग्र करें। ध्यान मंत्र इस प्रकार है- Maha Tripura Sundari Dhyan Mantra : बालार्कामुततैजसंत्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनी, नानालड् कृतिराजमानबपुषं बालेन्दुयुक्त शेखराम। हस्तैदिखुधनु: स्त्रणिं सुमशरं पाशं मुद्रा बिभ्रतीं।, श्री चक्रस्थित सुन्दरीं त्रिजगतामाधरभूतां भजे।।
इस प्रकार ध्यान करने के बाद मंत्र जप कर सकते हैं । मंत्र जप इस प्रकार है— Maha Tripura Sundari Mantra : मंत्र : “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कएईल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं।”
महात्रिपुरसुन्दरी की सिद्धि (Maha Tripura Sundari Siddhi) से सभी प्रकार के कष्टों का निबारण होता है । अनेक तांत्रिकों का कथन है कि इसकी सिद्धि के लिए साधक का कमरा पुता हो और पहनने के बस्त्र भी साधना काल में लाल हों, तथा महात्रिपुर सुन्दरी (Maha Tripura Sundari) लाल चित्र हो ।

भगबती त्रिपुर भैरवी मंत्र का जाप कैसे करें ?

Bhagwati Tripura Bhairavi Mantra Jaap kaise Kare ?
भगबती त्रिपुर भैरबी मंत्र : “ओम हसैं हस करीं हसैं।”

Tripura Bhairavi Mantra Vidhi :

साधक इस मंत्र को 1108 बार सबा तीन मास तक नित्य जपे तो समस्त कामना पुर्ण होती है और सिद्धि प्राप्त होती है । साधना किसी भी शुभ मूहुर्त में शुक्रबार की रात्रि 10 बजे उपरान्त आरम्भ करें जप के समय घी का दीपक या तिली का तेल का दीपक जलाबें और साधक लाल बस्त्र ही धारण करें ।

बाकि बिधि पूर्बोक प्रयोग गई है उसी के अनुसार साधना सम्पन्न करें । उक्त मंत्र सिद्धि प्राप्ति के लिये है ।

दिव्य सर्वमंगला साधना क्या है?

Divya Sarvmangala Sadhana :
माँ जगदम्बे को मंगल कारिणी कहा गया है, क्युकी जिस पर भगवती कि कृपा हो जाती है, उसके जीवन में सर्वत्र मंगल ही होता है । इसलिए माँ को सर्व मंगला के नाम से भी जाना जाता है । वास्तव में सर्व मंगला माता पार्वती का ही दूसरा नाम है । माँ को कई जगह पर मंगला गौरी के रूप में भी पूजा जाता है । आज भी कई प्रांतो में सुहागन स्त्रियां मंगला गौरी का व्रत रखती है और अखंड सौभाग्य कि कामना करती है । वही दूसरी तरफ गृहस्थी में पूर्ण सुख कि प्राप्ति हेतु माता पार्वती का सर्व मंगला स्वरुप साधको के मध्य प्रचलित है ।
सर्वमंगला साधना (Sarvmangala Sadhana) कब करनी चाहिए तथा इसके क्या लाभ है ?

जब गृहस्थी में अकारण तनाव बना हुआ हो ।
रात दिन कलह हो रहा हो ।
घर को नाना प्रकार के रोगो ने घेर लिया हो ।
हर कार्य पूरा होते होते रुक जाता हो ।
लाख परिश्रम के बाद भी प्रगति न हो पा रही हो ।
संतान विरोध पर उतारू हो ।
तब करे ये दिव्य सर्वमंगला साधना (Divya Sarvmangala Sadhana)। साथ ही सर्वमंगला साधना (Sarvmangala Sadhana) के कई लाभ है जो पूर्ण निष्ठा से करके ही प्राप्त किये जा सकते है । मित्रो आदि शक्ति जिस पर प्रसन्न होती है, उसके लिए कुछ भी कर सकती है । परन्तु इसके लिए हमें अपने अंदर पूर्ण निष्ठा तथा समर्पण को स्थान देना होगा । साथ ही धैर्य कि अत्यंत आवश्यकता है । एक या दो दिन में हम उच्च कोटि के साधक नहीं बन सकते है, ये एक लम्बी तथा अत्यंत परिश्रम पूर्ण यात्रा है । जिसे बड़ी सजकता से पूर्ण करना होता है ।
Sarvmangala Sadhana Vidhan : इस सर्वमंगला साधना (Sarvmangala Sadhana) को आप किसी भी पूर्णिमा से आरम्भ कर सकते है । समय संध्या काल में ६ से ९ के मध्य का होगा । आपके आसन वस्त्र लाल अथवा श्वेत हो । स्नान कर पूर्व या उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये । अपने सामने बाजोट रखे तथा उस पर उसी रंग का वस्त्र बिछाये जिस रंग के वस्त्र आपने धारण किये हो । अब बाजोट पर एक हल्दी मिश्रित अक्षत कि ढेरी बनाये । उस पर सुपारी स्थापित करे, ये सुपारी माता पार्वती का प्रतिक होगी । अब इस ढेरी आस पास एक एक ढेरी और बनाये, ये ढेरी आपको कुमकुम मिश्रित अक्षत से बनानी है । और इन दोनों पर भी एक एक सुपारी स्थापित करे । ये दोनों सुपारी माँ कि सहचरी जया तथा विजया का प्रतिक है । इसके बाद एक ढेरी काले तील कि बनाये माता पार्वती के ठीक पीछे, उस पर एक सुपारी स्थापित करे । ये सुपारी माता पार्वती के ही दूसरे स्वरुप भगवती महेश्वरी का प्रतिक है जो कि भगवान महेश्वर अर्थात शिव के ह्रदय से प्रगट होती है । माता सर्व मंगला के पीछे मूल रूप से यही महेश्वरी शक्ति कार्य करती है । तथा साधक के मनोरथ पूर्ण करती है ।
अब आप सर्व प्रथम सद्गुरु तथा गणेश पूजन संपन्न करे । इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए माता पार्वती के दाहिनी और रखी हुई सुपारी अर्थात जया शक्ति पर, कुमकुम, हल्दी तथा अक्षत अर्पण करे .. ” ॐ ह्रीं ऐं जया दैव्यै नमः”
इसके बाद माँ के बायीं और रखी सुपारी पर कुमकुम, हल्दी तथा अक्षत अर्पण करे निम्न मंत्र बोलते हुए । “ॐ क्लीं श्रीं क्लीं ऐं विजया शक्त्यै नमः” इसके बाद माता महेश्वरी का तथा माता पार्वती का सामान्य पूजन करे । कुमकुम, अक्षत, हल्दी, सिंदूर, पुष्प आदि अर्पण करे । शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करे । तथा भोग में केसर मिश्रित खीर का भोग अर्पित करे । माँ पार्वती तथा महेश्वरी का पूजन करते समय तथा सामग्री अर्पित करते समय सतत निम्न मंत्र का जाप करते रहे…

” ॐ ह्रीं ॐ” इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प ले कि किस मनोकामना कि पूर्ति हेतु आप ये सर्वमंगला साधना (Sarvmangala Sadhana) कर रहे है । तत्पश्चात निम्न मंत्र कि रुद्राक्ष माला से एक माला जाप करे … ” ॐ ह्रीं महेश्वरी ह्रीं ॐ नमः”

इसके बाद सर्वमंगला साधना मंत्र (Sarvmangala Sadhana Mantra) कि ११ माला जाप करे, सर्वमंगला साधना मंत्र इस प्रकार है ।

Sarvmangala Sadhana Mantra : मंत्र -” ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ऐं सर्वमंगला मंगल कारिणी शिवप्रिया पार्वती मंगला दैव्यै नमः” इसके बाद पुनः एक माला महेश्वरी मंत्र कि संपन्न करे । मंत्र जपके पश्चात् समस्त जप माँ पार्वती के श्री चरणो में समर्पित कर दे । तथा प्रसाद पुरे परिवार में वितरित कर स्वयं भी ग्रहण करे । इसी प्रकार ये सर्वमंगला साधना आपको ७ दिवस तक करना है । अंतिम दिन घी में अनार के दाने तथा जायफल का चूर्ण मिलाकर १०८ आहुति अग्नि में प्रदान करे । इस प्रकार ७ दिवस में ये दिव्य सर्वमंगला साधना पूर्ण होती है । अगले दिन अक्षत, सुपारी, वस्त्र, आदि सभी जल में विसर्जित कर दे । सम्भव हो तो किसी कन्या को भोजन ग्रहण करवाये । और दक्षिणा दे आशीर्वाद ले । ये सम्भव न हो तो कन्या को मिठाई तथा दक्षिणा देकर आशीर्वाद ले ।

निसंदेह पूर्ण मन तथा एकग्रता से सर्वमंगला साधना करने पर माँ सर्व मंगला साधक के समस्त कष्टो का निवारण कर सुख तथा अपना आशीष प्रदान करती है ।

दश महाविद्या शाबर मंत्र

Dash Mahavidya Shabar Mantra :

दश महाविद्या (Dash Mahavidya) शब्द संस्कृत भाषा के शब्दों “महा” तथा “विद्या” से बना है- “महा” अर्थात महान्, विशाल, विराट ; तथा “विद्या” अर्थात ज्ञान । दश महाविद्या (Dash Mahavidya) अर्थात महान विद्या रूपी देवी । दश महाविद्या (Dash Mahavidya), देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है । इन्हें दश महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है । ये दश महाविद्या आदि शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं ।दश महाविद्या विभिन्न दिशाओं की अधिष्ठातृ शक्तियां हैं । भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की, श्री विद्या (षोडशी)- ईशान दिशा की, देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की, श्री त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की, माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की, भगवती धूमावती पूर्व दिशा की, माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की, भगवती मातंगी वायव्य दिशा की तथा माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है ।

पौराणिक कथा के अनुसार …..

श्री देवीभागवत पुराण के अनुसार दश महाविद्याओं (Dash Mahavidya) की उत्पत्ति भगवान शिव और उनकी पत्नी सती, जो कि पार्वती का पूर्वजन्म थीं, के बीच एक विवाद के कारण हुई । जब शिव और सती का विवाह हुआ तो सती के पिता दक्ष प्रजापति दोनों के विवाह से खुश नहीं थे । उन्होंने शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमन्त्रित किया लेकिन द्वेषवश उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर और अपनी पुत्री सती को निमन्त्रित नहीं किया । सती, पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं जिसे शिव ने अनसुना कर दिया, इस पर सती ने स्वयं को एक भयानक रूप में परिवर्तित (महाकाली का अवतार) कर लिया । जिसे देख भगवान शिव भागने को उद्यत हुए । अपने पति को डरा हुआ जानकर माता सती उन्हें रोकने लगीं तो शिव जिस दिशा में गये उस दिशा में माँ का एक अन्य विग्रह प्रकट होकर उन्हें रोकता है । इस प्रकार दसों दिशाओं में माँ ने वे दस रूप लिए थे वे ही दश महाविद्याएँ (Dash Mahavidya) कहलाईं । इस प्रकार देवी दस रूपों में विभाजित हो गयीं जिनसे वह शिव के विरोध को हराकर यज्ञ में भाग लेने गयीं । वहाँ पहुँचने के बाद माता सती एवं उनके पिता के बीच विवाद हुआ । दक्ष प्रजापति ने शिव की निंदा की और सती ने यज्ञ कुंड में प्राणों की आहुति दे दी ।

कहीं-कहीं 24 विद्याओं का वर्णन भी आता है । परंतु मूलतः दश महाविद्या (Dash Mahavidya) ही प्रचलन में है । इनके दो कुल हैं । इन दश महाविद्या साधना (Dash Mahavidya Sadhana) 2 कुलों के रूप में की जाती है । श्री कुल और काली कुल । इन दोनों में नौ- नौ देवियों का वर्णन है । इस प्रकार ये 18 हो जाती है । कुछ ऋषियों ने इन्हें तीन रूपों में माना है । उग्र, सौम्य और सौम्य-उग्र । उग्र में काली, छिन्नमस्ता, धूमावती और बगलामुखी है । सौम्य में त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी और महालक्ष्मी (कमला) है । तारा तथा भैरवी को उग्र तथा सौम्य दोनों माना गया हैं देवी के वैसे तो अनंत रूप है पर इनमें भी तारा, काली और षोडशी के रूपों की पूजा, भेद रूप में प्रसिद्ध हैं । भगवती के इस संसार में आने के और रूप धारण करने के कारणों की चर्चा मुख्यतः जगत कल्याण, साधक के कार्य, उपासना की सफलता तथा दानवों का नाश करने के लिए हुई । सर्वरूपमयी देवी सर्वभ् देवीमयम् जगत । अतोऽहम् विश्वरूपा त्वाम् नमामि परमेश्वरी । अर्थात् ये सारा संसार शक्ति रूप ही है । इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए । महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास में एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है ।

शाक्त भक्तों के अनुसार “दस रूपों में समाहित एक सत्य की व्याख्या है – दश महाविद्या (Dash Mahavidya) ” जिससे जगदम्बा के दस लौकिक व्यक्तित्वों की व्याख्या होती है ।दश महाविद्याएँ (Dash Mahavidya) तान्त्रिक प्रकृति की मानी जाती हैं जो – कालीतारा (देवी) छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला शाक्त दर्शन, दश महाविद्याओं (Dash Mahavidya) को भगवान विष्णु के दस अवतारों से सम्बद्ध करता है और यह व्याख्या करता है कि दश महाविद्याएँ वे स्रोत हैं जिनसे भगवान विष्णु के दस अवतार उत्पन्न हुए थे । दश महाविद्याओं (Dash Mahavidya) के ये दसों रूप चाहे वे भयानक हों अथवा सौम्य, जगज्जननी के रूप में पूजे जाते हैं । सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । ॐ सोऽहं सिद्ध की काया, तीसरा नेत्र त्रिकुटी ठहराया । गगण मण्डल में अनहद बाजा । वहाँ देखा शिवजी बैठा, गुरु हुकम से भितरी बैठा, शुन्य में ध्यान गोरख दिठा । यही ध्यान तपे महेशा, यही ध्यान ब्रह्माजी लाग्या । यही ध्यान विष्णु की माया । ॐ कैलाश गिरी से, आयी पार्वती देवी, जाकै सन्मुख बैठ गोरक्ष योगी,देवी ने जब किया आदेश । नहीं लिया आदेश, नहीं दिया उपदेश । सती मन में क्रोध समाई, देखु गोरख अपने माही,नौ दरवाजे खुले कपाट, दशवे द्वारे अग्नि प्रजाले, जलने लगी तो पार पछताई । राखी राखी गोरख राखी, मैं हूँ तेरी चेली, संसार सृष्टि की हूँ मैं माई । कहो शिवशंकर स्वामीजी, गोरख योगी कौन है दिठा । यह तो योगी सबमें विरला, तिसका कौन विचार । हम नहीं जानत,अपनी करणी आप ही जानी । गोरख देखे सत्य की दृष्टि । दृष्टि देख कर मन भया उनमन, तब गोरख कली बिच कहाया । हम तो योगी गुरुमुख बोली, सिद्धों का मर्म न जाने कोई । कहो पार्वती देवीजी अपनी शक्ति कौन-कौन समाई । तब सती ने शक्ति की खेल दिखायी, दश महाविद्या (Dash Mahavidya) की प्रगटली ज्योति । काली दश महाविद्या (Dash Mahavidya) में प्रथम रूप है । माना जाता है माँ ने ये काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था । जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने के लिए इनकी आराधना की जाती है । माता का यह रूप साक्षात और जाग्रत है । काली के रूप में माता का किसी भी प्रकार से अपमान करना अर्थात खुद के जीवन को संकट में डालने के समान है । महा दैत्यों का वध करने के लिए माता ने ये रूप धरा था। सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता की वीरभाव में पूजा की जाती है । काली माता तत्काल प्रसन्न होने वाली और तत्काल ही रूठने वाली देवी है । अत: इनकी साधना या इनका भक्त बनने के पूर्व एकनिष्ठ और कर्मों से पवित्र होना जरूरी होता है ।

यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट होने वाली काली माता को नमस्कार । यह काली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव-दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई थी । इनका क्रोध तभी शांत हुआ था जब शिव इनके चरणों में लेट गए थे ।

।।Dash Mahavidya Shabar Mantra : प्रथम ज्योति महाकाली ।। “ॐ निरंजन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई माता शम्भु शिवानी काली ओ काली काली महाकाली, कृष्णवर्णी, शव वहानी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडग धारी, गले मुण्डमाला हंस मुखी । जिह्वा ज्वाला दन्त काली । मद्यमांस कारी श्मशान की राणी । मांस खाये रक्त-पी-पीवे । भस्मन्ति माई जहाँ पर पाई तहाँ लगाई । सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगीन, नागों की नागीन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली चार वीर अष्ट भैरों, घोर काली अघोरकाली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ॐ काली तुम बाला ना वृद्धा, देव ना दानव, नर ना नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली । क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।”

।।Dash Mahavidya Shabar Mantra :द्वितीय ज्योति तारा ।। “ॐ आदि योग अनादि माया जहाँ पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया । ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कापलि, जहाँ पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद मुख अमिरस पीवे,अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खण्डाग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा । नीली काया पीली जटा, काली दन्त में जिह्वा दबाया । घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा । पंच मुख करे हां हां ऽऽकारा,डाकिनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया । चण्डी तारा फिरे ब्रह्माण्डी तुम तो हों तीन लोक की जननी । ॐ ह्रीं स्त्रीं फट् ।”

।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :तृतीय ज्योति षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी ।। “ॐ निरञ्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्याः उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवधर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद। तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश । हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश । त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी । इडा पिंगला सुषम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी । उग्र बाला,रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला । योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता । श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ।”

।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी ।। “ॐ आदि ज्योति अनादि ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत परम ज्योति मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रातः समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी । बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्नपूर्णी दूध पूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया । चौदह भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार । योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता । ॐ ह्रीं ।। ” ।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :पञ्चम ज्योति छिन्नमस्ता ।। “सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या। पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये । श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र-वैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा ।”

।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :षष्टम ज्योति भैरवी ।। “ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटा, गले में माला मुण्डन की । अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खंजर,कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवें पाताल, सातवें पाताल मध्ये परम-तत्त्व परम-तत्त्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल-भैरवी, त्रिपुर-भैरवी, सम्पत्त-प्रदा-भैरवी,कौलेश-भैरवी, सिद्धा-भैरवी, विध्वंसिनि-भैरवी,चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी-भैरवी, षटकुटा-भैरवी, नित्या-भैरवी । जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मन्त्र मत्स्येन्द्रनाथजी को सदा शिव ने कहायी । ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथजी अनन्त कोट सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हटे काल जंजाल भैरवी मन्त्र बैकुण्ठ वासा । अमर लोक में हुवा निवासा । ॐ ह्सैं ह्स्क्ल्रीं ह्स्त्रौः।। ” ।।Dash Mahavidya Shabar Mantra :सप्तम ज्योति धूमावती ।। “ॐ पाताल निरंजन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आये,कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावन्ती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार आई थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि । डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी । जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाजा जीया आकाश तेरा होये ।धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ आप भयी अतीत । ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा ।।”

।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :अष्टम ज्योति बगलामुखी ।। “ॐ सौ सौ दुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पिला । संहासन पीले ऊपर कौन बसे । सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी । कच्ची बच्ची काक-कूतिया-स्वान-चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुद्-गर मार, शत्रु हृदय पर सवार तिसकी जिह्वा खिच्चै बाला । बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटण धरणी, अनन्त कोट सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्दसुर फिरे खण्डे खण्डे । बाला बगलामुखी नमो नमस्कार । ॐ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन-बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात् ।” ।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :नवम ज्योति मातंगी ।। “ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति,शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला,शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे । ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा ।। ”

।। Dash Mahavidya Shabar Mantra :दसवीं ज्योति कमला ।। “ॐ अ-योनी शंकर ॐ-कार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप । हाथ में सोने का कलश, मुख से अभयमुद्रा । श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा । देवी देवत्या ने किया जयॐ-कार । कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्र कमलों का किया हवन । कहे गोरख, मन्त्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान । जिसकी तीन लोक में भया मान । कमला देवी के चरण कमल को आदेश । ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध-लक्ष्म्यै नमः ।।” सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो । सिद्ध योग मर्म जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका । योगी योग नित्य करे प्रातः उसे वरद भुवनेश्वरी माता । सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी । जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी । नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी । ॐ-कार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी । पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहां पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी । आलस मोड़े, निद्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावन्ती करें । हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे । जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे । जो दसविद्या का सुमिरण करे । पाप पुण्य से न्यारा रहे । योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवरते । मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जाये । इतना दश महाविद्या मन्त्र (Dash Mahavidya Mantra) जाप सम्पूर्ण भया । अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अचलगढ़ पर्वत पर बैठ श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्री नाथजी गुरुजी को आदेश आदेश ।।