Naag Sadhana

नाग कन्या साधना क्या है ?

Naag Kanya Sadhana :
नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) में नाग के 9 रूपों की उपासना की जाती है । नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) से साधक शत्रु भय और किसी भी तरह की चिंता से मुक्ति पा लेता है । नाग वशीकरण साधना का प्रयोग करके धन की प्राप्ति होती है । जिन जातकों की कुंडली में नाग दोष होता है उन्हें इस नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) से बहुत लाभ होता है । नाग देवता की कृपा से साधक के जीवन में धन सम्पदा और प्रेम की प्राप्ति होती है । नाग मंत्र साधना से साधक का चहुमुखी विकास होता है और उसके जीवन मंगलमय होने लगता है ।

नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) में नाग के 9 रूपों की साधना का विशेष महत्व है । अगर कोई साधक किसी विशिष्ठ कार्य सिद्धि के लिए नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) उपासना करना चाहता है तो उसे नाग के विभिन्न रूपों और उनकी साधना की विधि के बारे में जानकारी होनी चाहिए । नाग के 9 रूपों की साधना करने के बाद नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) का मार्ग सुगम हो जाता है । इसलिए नाग के 9 रूपों की साधना पहले करना चाहिए ।

अगर कोई साधक जीवन में बड़ी आर्थिक सफलता प्राप्त करना चाहता है तो उसे शेषनाग की साधना करनी चाहिए । शेषनाग भगवान विष्णु के आसन के रूप में ख्यात हैं । उनकी आराधना करने से साधक को हर तरह से संकट से मुक्ति मिलती है । शेषनाग की साधना से भक्त को विशेष आर्थिक लाभ होता है । साधक की नौकरी, व्यापार आदि में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं । इस नाग देवता की साधना से धैर्य और अभय जैसे मानसिक गुणों की भी प्राप्ति होती है ।

अगर किसी व्यक्ति का जीवन भयाक्रांत हो गया है और ज्ञात और अज्ञात भय हर समय घेरे रहता है तो उसे कर्कोटक नाग की साधना करना चाहिए । कर्कोटक नाग की साधना करने पर साधक को भय से सदा के लिए मुक्ति मिल जाती है । इस साधना को पूरा करने वाला साधक और उसका परिवार किसी भी शत्रु भय से मुक्त हो जाते हैं । अगर कोई साधक शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी सफलता प्राप्त करना चाहता है तो उसे वासुकि नाग की साधना करना चाहिए । इस साधना से साधक को शिक्षा और नौकरी से जुड़े हर मामले में आशा के अनुरूप सफलता मिलती है । अगर आप किसी परीक्षा में पास होकर कोई बड़ा पद प्राप्त करना चाहते हैं तो वासुकि नाग साधना से आपको चमत्कारिक लाभ होगा । इस साधना से साधक के मस्तिष्क और बुद्धि का चहुमुखी विकास होता है और उसकी स्मरण शक्ति में भी वृद्धि होती है । विवाह नही होने की स्थिति में साधक पदम नाग की आराधना करनी चाहिए । पदम नाग की साधना करने वाले साधक में वशीकरण की शक्ति आ जाती है । अगर किसी व्यक्ति की लाख कोशिश करने पर भी शादी नही हो रही है या संतान प्राप्त नही हो रही है तो उसे पदम नाग की साधना करने से अभूतपूर्व लाभ होता है । जीवन में प्रेम की प्राप्ति के लिए साधक को धृतराष्ट्र नाग की आराधना करना चाहिए । अगर आपके जीवन में प्रेम की प्राप्ति में किसी भी तरह की बाधा हो तो आपको इस साधना से तत्काल लाभ प्राप्त होगा । प्रेम की सफलता में इस साधना से कई साधकों को बहुत लाभ हुआ है । अगर आपको विश्व भ्रमण में रूचि है तो आपको शंखपाल नाग की साधना अवश्य करना चाहिए । इस साधना से साधक अपने विश्व भ्रमण के मार्ग में आने वाली हर बाधा को आसानी से पार कर लेता है ।

आरोग्य की प्राप्ति और शरीर में होने वाले किसी भी विकार या रोग से मुक्ति के लिए भक्तों को कम्बल नाग की आराधना करनी चाहिए । कम्बल नाग साधना सरल नही है लेकिन इस साधना से असाध्य से असाध्य रोगों से भी छुटकारा मिल जाता है । उचित नियमों का पालन करते हुए इस साधना को करने से साधक को हर प्रकार के रोग से मुक्ति मिल जाती है । कुछ बीमारियाँ जिन पर दवाइयों का कोई असर नही होता वे भी इस साधना से दूर भाग जाती हैं । कम्बल साधना करने वाले साधक का काया कल्प हो जाता है और वह पूर्ण स्वास्थ्य का लाभ लेता है ।

जिस व्यक्ति को शत्रु का भय बना रहता हो उसे तक्षत नाग की साधना करना चाहिए । जीवन में किसी शत्रु के प्रभाव को नष्ट करने के लिए तक्षत नाग साधना बहुत असरदार है । कोई भी ज्ञात या अज्ञात शत्रु के भय से मुक्ति प्राप्त करने के लिए तक्षत नाग की आराधना से तुरंत लाभ प्राप्त होता है और शत्रुओं का नाश होता है । किसी भी साधक को ये नाग कन्या साधना करते समय सावधान रहने की ज़रूरत होती है ।

अगर आपके ऊपर किसी व्यक्ति ने तंत्र का प्रयोग कर दिया है तो उससे प्रभाव को नष्ट करने के लिए तथा शत्रु से बचाव के लिए साधक को कालिया नाग की साधना करना चाहिए । इस नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) से साधक हर तरह की तंत्र बाधा से मुक्ति पा लेता है । इस साधना के प्रयोग से किसी शत्रु का विनाश भी किया जा सकता है या उसको बर्बाद किया जा सकता है । इस साधना के प्रयोग से आपके सभी शत्रु निस्तेज पड़ जाते हैं । नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) करते समय मन्त्रों के उच्चारण का विशेष महत्व है । अगर आपकी कुंडली में कालसर्प दोष है तो आपको “ ओम कुरुकुल्ये हूं फट स्वाहा” इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए । नाग कन्या साधना (naag kanya sadhana) में इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए ।

Naag Kanya Sadhana Mantra – “ओम अनन्तेशाय विद्द्हे महभुजान्काय धीमही तन्नो नाथ: प्रचोदयात” “ओम नवकुलाय विद्द्हे विषदन्ताय धीमही तन्नो सर्प प्रचोदयात” नाग मंत्र साधना के अंतर्गत नाग कड़ा साधना का भी विशेष महत्व है । इस साधना को करने से साधक नाग का वशीकरण कर सकता है और किसी व्यक्ति जिसे नाग ने काटा हो उसका इलाज कर सकता है । नाग को वश में करने के लिए उसे कील लगाना होता है । जब कोई साधक विधि पूर्वक नाग कड़ा का जप करता है तो नाग उसके सम्मुख आकर बैठ जाता है । जब साधना पूरी हो जाए तो नाग को किसी बाम्बी के पास ले जाकर छोड़ देना चाहिए और कील मुक्त कर देना चाहिए ।

नाग कड़ा साधना के लिए साधक को किसी नदी या तालाब के किनारे बैठ कर किया जा सकता है । इस साधना को करने के लिए घी का दीपक, फूल और दूध की ज़रूरत होती है । एक शांत जगह पर बैठकर अगरबत्ती लगा दें और घी का दीपक जला दें । अब थोड़े से फूल अर्पित करके नाग कड़े का उच्चारण करें । नाग मंत्र साधना को करते समय नियमों की अनदेखी बिल्कुल न करें । क्योंकि किसी भी तरह की लापरवाही या अति-आत्मविश्वास से हुई लगती से लाभ की जगह हानि उठानी पड़ सकती है ।

{{ ये Naag Kanya Sadhana केवल सामान्य जानकारी है । भूल से भी ये Naag Kanya Sadhana क्रिया बिना गुरु आज्ञा और बिना गुरु के बिना न करे । बरना अपने नुकसान के आप स्वयं जिम्मेदार होंगे ।}}

ईच्छा पुर्ति मनसा देवी साधना

Iccha Purti Mansa Devi Sadhana :
ईच्छा पुर्ति मनसा देवी (Mansa Devi) की साधना एक आद्यात्मिक अनुभव की ओर एक प्रशंसा यात्रा होती है । यह साधना आपको आपकी मन की गहराइयों तक जाने का अद्वितीय माध्यम प्रदान करती है, जिससे आप अपनी ईच्छाओं को पुर्ति कर सकते हैं ।

मनसा देवी (mansa devi) की साधना में, आपको अपने मन को शुद्ध करने का प्रयास करना होता है और उसे नियंत्रित करने की कला सीखनी होती है । यह साधना आपको आत्म-संयम, ध्यान, और मनोबल की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करती है, जिससे आप अपनी ईच्छाओं को प्राप्त करने के लिए संगीत रच सकते हैं ।

इस विद्या से साधक पुरी तरहा एक जादुगर बन जाता है और कुछ भी कर साकता है । चुटकी बजाते ही जो चाहे पा साकता है, और बहुत कुछ किया जा सकता जो साधक का ईच्छा हो, यानि कहा जा सकता है हर ईच्छा सच करने का ताकत हसिल होता है । ईस मंत्र साधना मेँ माला कि जरुरत नही है।एक घंटा का प्रतिदिन जाप करना है । किसि भी दिन किसि भी समय साधना आरंभ किया जा साकता है । प्रतिदिन एक आधेरे कक्ष मेँ मनसा देवी (mansa devi) के चित्र को पुष्प दे कर आगरवति और दिप जाला कर पुजा कारना है । दिप को आपनी मार्जी से किसि भी स्थान रख ले प्रकाश के लिय।तेल रुप मेँ घि ले । आब चित्र को देखते हुए जाप करना है ।

Mansa Devi Sadhana Mantra : मंत्र- ॐ हुं मनसा अमुक हुं फट॥ इस मंत्र का जाप सख्या र्निधारित नही है । अमुक के स्थान पर कुछ भी जोड ले । उदाहरण :

ॐ हुं मनसा (..ईच्छा..) हुं फट ॥ पहले दिन जो भी जाप करते हे वह पुरा होने तक प्रतिदिन जाप करे, जाब पहला ईच्छा पुरा हो जाए तो दुसारा ईच्छा पर साधना करना है, जाब दुसरा भी कामयब हो जाए तो तिसरा साधना करना है ,जब वह सच हो जाए तो जाने साधना सफल हुआ ।

आब कित्ने समय मे आप का ईच्छा सच होता है ध्यान दे आगर एक दो मिनट मे सच हो जाए तो आगे पुजा पाठ कारने का जरुरत नही है,फिर सिर्फ जाप कारे और एक दो सेकेँड मेँ फल पाए तो आब पुरी तरहा से एक जादुगर है । चेतावनी :
सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना संपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दर्शन मेँ साधना समपन्न करेँ । बिना गुरू में साधना करना अपने विनाश को न्यौता देना है । बिना गुरु आज्ञा में साधना करने पर साधक पागल हो जाता है या म्रत्यु को प्राप्त करता है इसलिये कोई भी साधना बिना गुरु आज्ञा ना करेँ ।

तंत्र में सर्प का प्रयोग

Tantra Mein Sarp Ka Prayog :
सर्प इस संसार में सबसे रहस्यमय जन्तु माना गया है । बिज्ञान और सभ्यता का इतना बिकास हो जाने के बाद भी अभी तक यह निशिचत नहीं हो सका है कि सर्प की कितनी किस्में और प्रजातियाँ है तथा उसकी आयु क्या है ? साथ ही आज भी इस तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) के बिषय में अनेक भ्रान्तियाँ फैली हैं । सपेरों की बीन पर आकर्षित होकर सर्प का नाचना या बीन बजाने पर निकल आना इस बात का सूचक है कि सर्प संगीत प्रेमी है और बीन की धुन पर मगन होता है, पर बैज्ञानिकों ने खोज की है कि सर्प के तो कान ही नहीं होते । बह अपने पेट के नीचे की त्वचा के जमीन पर स्पर्श के कारण आहटों से काम लेता है । उसकी भूमिका एक अन्धे के समान होती है । बीन का आकार –प्रकार तथा सपेरे का हाथ नचाना देखकर बह समझता है कि उसका ही कोई साथी ऐसा कर रहा है, अत: बह भी उसी प्रकार करने लगता है ।

सर्प का भारतीय धर्म और तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है । धार्मिक आस्था के अनुसार इस पृथ्वी का सम्पूर्ण भार शेषनाग अपने सिर पर उठा रखा है । भगबान बिष्णु की शैय्या ही शेषनाग है । शंकर के गले में सदा बिषधर पड़े रहते हैं और इसी कारण बर्ष में एक बार ‘नाग पंचमी’ का त्यौहार बड़ी धूमधाम और श्रद्धा से मनाया जाता है जिसमें नागों की पूजा की जाती है ।

भारतीय तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) नाग को प्रमुख माना गया है । बिशेषत: तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) की पूजा होती है । हमारे धर्म में कालिया, शेषनाग, कद्रू (साँपों की माता ) पिलीबा आदि बहुत प्रसिद्ध हैं ।

सर्प के सम्बन्ध में सैकड़ो कथाएं हैं । सर्प के मस्तक में ‘मणि’ होने की बात कही गई है और सर्प का एक रूप इच्छाधारी भी माना गया है की चाहे जब बह स्त्री –पुरुष का या अन्य रूप ले सकता है । तक्षक राजा परीक्षीत को दंश मारना चाहता था । मानब रूप धरकर महामंत्र बिशेषज्ञ तांत्रिक पंडित को उसने द्रब्य देकर बापस कर दिया था । यह ब्रुतांत पौराणिक ग्रंथो में है ।

सर्प कितना भी हिंसक, उपद्रबी या बिषयुक्त क्यों न हो, बह शिशु को या अबोध बालक को अपना शिकार नहीं बनाता । यह एक आश्चर्य की बात है । आज तक किसी शिशु पर सर्प ने दंश नहीं मारा हैं। साँप अगर किसी शिशु के सिर पर अपना फन फैला देता है तो ,तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) का यह कार्य को बिस्तार से कहा गया है की ..बह राजा अबश्य ही बनता है । यह निश्चित है ।

सर्प की भागने की रफ़्तार घोड़ा भी नहीं पा सकता है। देखते – देखते बह लापता हो जाता है । साँप की केंचुल को मंत्र सिद्ध कर ‘गल्ले’ में या घर में रखना शुभ माना गया है । साँप की केंचुल से बबासीर, नजर आदि रोग भी दूर होते हैं । साँप की केंचुल तंत्र –मंत्र के भी काम आती है । बास्तब में भारतीय संस्कृति और तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) का बड़ी महत्वपूर्ण स्थान है । अब में सर्प के कुछ प्रयोग लिख रहा हूँ ।
1. साँप की केंचुल कमर में बाँध देने से तीसरे दिन आने बाला ज्वर दूर होता है ।
2. स्त्री के नितम्बों पर साँप की केंचुल बाँध देने से प्रसब सुखपुर्बक होता है ।
3. बबासीर के मस्सों पर साँप की केंचुल बाँध देने से बबासीर के रोग में आराम मिलता है ।

4. साँप की दांत ताबीज में डालकर पहिनाने से सुखपुर्बक प्रसब होता है ।
5. साँप की केंचुल को कपडे में भरकर पेडू के ऊपर बाँधने से संग्रहणी रोग में लाभ होता है ।
6. ‘ॐ मुनिराज आस्तिक’ के जाप से साँप पास नहीं आता है ।
7. साँप की दाढ़, नेबले के बाल, श्मशान की राख मिलाकर धरती में गाढ दें जो भी उस पर निकलेगा, उसका बिद्वेष्ण हो जायेगा ।
8. साँप की केंचुल और नेबले के बाल मिलाकर जहाँ भी जलाओगे बहाँ कलह शुरू हो जायेगा ।
9. तंत्र में सर्प (tantra mein sarp) की हड्डी का चूर्ण जिस पर डाल दोगे बह बीमार हो जायेगा ।

अष्ट नागिनी मंत्र क्या है?

Asht Nagini Mantra : अब आठ प्रकार की नागिनियों को सिद्ध करने के मंत्र तथा उनकी साधन बिधियों का बर्णन किया जाता है । किसी भी नागिनी का साधना करते समय उसका माता, बहन अथबा पत्नी के रूप में चिंतन करना चाहिए । साधक जिस रूप में नागिनी का चिंतन करेगा, बह उसी रूप में साधक की मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी । अनन्त मुखी नागिनी मंत्र : “ॐ पू: अनन्तमुखी स्वाहा ।”

इस मंत्र से अनंतमुखी नागिनी की उपासना करनी चाहिए । नाग भबन में जाकर, नाभि के बराबर जल में उतर कर नागिनी मंत्र (nagini mantra) का आठ सहस्र की संख्या में जप करें । जप के अन्त में नाग कन्या साधक के निकट आती है । उस समय साधक को चाहिए की बह उस के मस्तक पर पुष्प डाले । इस भांति साधन करने से नागिनी साधक के रूप में उस के मनोरथ पूरा करती है तथा उसे प्रतिदिन आठ स्वर्ण मुद्रा एबं भोज्य पदार्थ भेंट करती है ।

शंखिनी नागिनी मंत्र : “ॐ शंखिनी बायुमुखी हुं हुं ।”
इस मंत्र से शंखिनी नागिनी की उपासना करनी चाहिए । नागलोक में जाकर शंखिनी नागिनी मंत्र (nagini mantra) का एक लाख जप करने से नागिनी प्रसन्न होकर साधक की सब इच्छाओं को पूरा करती है ।

बासुकी मुखी नागिनी मंत्र : “ॐ बासुकीमुखी स्वाहा ।”

इस मंत्र से बासुकीमुखी नागिनी की उपासना करना चाहिए । रात्रि के समय नाग- स्थान में जाकर आठ सहस्र की संख्या में नागिनी मंत्र (nagini mantra) का जप करें । जप के अन्त में नाग- कन्या साधक के समीप आती है और उसकी पत्नी होकर, उसके सब मनोरथों को पूरा करती है तथा साधक को प्रतिदिन दिव्य बस्त्र, भोज्य पदार्थ एबं स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है ।

तक्षकमुखी नागिनी मंत्र : “ॐ कालजिह्वा यू: स्वाहा ।”

इस मंत्र से तक्षकमुखी नागिनी की उपासना करनी चाहिए । रात्रि के समय नाग स्थान में बैठकर आठ सहस्र की संख्या में नागिनी मंत्र (nagini mantra) का जप करने से नागिनी शिरोरोग से ग्रस्त होकर साधक के समीप आती है तथा उसे सम्बोधित करती हुई कहती है – हे बत्स ! मैं तुम्हारा क्या कार्य साधन करुँ ? उस समय साधक यह उत्तर दें – “तुम मेरी माता हो जाओं !” यह सुन कर बह नागिनी प्रसन्न होकर साधक को बस्त्र आभुष्ण, मनोहर भोज्य पदार्थ तथा स्वर्ण मुद्रा प्रदान करती है । साधक को चाहिए की बह उन सब मुद्राओं को ब्यय कर दे, क्योंकि उन सबको ब्यय न करने से नागिनी क्रोध करती है तथा फिर मुद्रा नहीं देती ।

कर्कोटमुखी नागिनी मंत्र : “ॐ पू: कर्कोटमुखी स्वाहा ।”
इस मंत्र से कर्कोटमुखी नागिनी की उपासना करनी चाहिए । शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन नागलोक में जाकर बलिदान करके गंध पुष्पादि के उपचार द्वारा पूजन और मंत्र का जप करने से सहस्र नाग कन्यायें साधक के पास आती हैं । उस समय साधक को दूध का अर्घ्य देकर नसे कुशल – क्षेम पूछनी चाहिए । तदुपरांत बे नाग कन्यायें साधक की पत्नी रूप में उनका मनोरथ पूर्ण करती है और उसे आठ स्वर्ण मुद्रा प्राप्त करती है ।

कुलीर मुखी नागिनी मंत्र : “ॐ हुं हुं पूर्बभूप मुखी स्वाहा ।”

इस मंत्र से कुलीर मुखी नागिनी की उपासना करनी चाहिए । रात्रि के समय सरोबर पर जाकर नागिनी मंत्र (nagini mantra) का आठ सहस्र जप करें तब सुन्दरी नाग कन्या साधक के समीप आती है तथा उसकी भगिनीस्वरूपा बन कर प्रतिदिन स्वर्ण – मुद्रा तथा बस्त्र देती है । बह साधक पर प्रसन्न होकर रात्रि के समय किसी अन्य नागकन्या को लाकर साधक के अन्य मनोरथ को पूरा कर देती है ।

पद्मिनी मुखी नागिनी मंत्र : “ॐ पू: पद्मिनी मुखी स्वाहा ।” इस मंत्र से पद्मिनी मुखी नागिनी की उपासना करना चाहिए । किसी नदी के संगम –स्थल पर जाकर दूध भोजन सहित नागिनी मंत्र (nagini mantra) से प्रतिदिन एक सहस्र की संख्या में जप करें तो नाग कन्या प्रतिदिन साधक के पास आती है । उसी समय साधक को चन्दन के जल से अर्घ्य देना चाहिए तदुपरांत यह नाग कन्या साधक की पत्नी बन कर उसे पाँच स्वर्ण मुद्रा तथा अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थ भेंट करती है ।


महापद्ममुखी नागिनी मंत्र : “ॐ महापद्मिनी पू: स्वाहा ।”

इस मंत्र से महापद्ममुखी नागिनी की उपासना करनी चाहिये । रात्रिकाल में किसी सरोबर तट पर बैठकर नागिनी मंत्र (nagini mantra) का आठ सहस्र जप करे तो नाग कन्या आकर साधक की पत्नी के रूप में उसे अभिलाषित बस्तुयें प्रदान करती है । साधक को चाहिए कि बह उन सब बस्तुओं का ब्यय कर दें । यदि उन में से कुच्छ भी बचा रहेगा तो नागिनी क्रोधित होती है तथा साधक को फिर कुच्छ नही देगी ।

पद्मिनी नागिनी साधना विधि

Padmini Nagini Sadhana Vidhi नाना प्रकार के देबकार्यो में एक बर्ग नागों का भी आता है । अन्य देबों की भांति नाग भी देबगण ही हैं । जिस प्रकार जलों के अभिमानी देब बरुण आदि हैं और जलों के रक्षक राक्षसादि अपदेब हैं, धनों के अभिमानी देब यक्ष आदि हैं उसी प्रकार संगीत और कलाओं के अभिमानी देबताओं में गन्धर्ब और अप्सराएं आदि हैं । इसी प्रकार बिषों के अभिमानी देबताओं में नागादि आते हैं ।
रहस्य : नागादि देबगणों की उपासना भी सांसारिक सुख, भौतिक समृद्धि, लौकिक समस्याओं के निराकरण हेतु नागादि देबगण भी मनुष्यों के प्रति अतिशय सहिष्णु, उदार और सहयोगी रहे हैं । आज भी नागपंचमी का पर्ब नागों की प्रसन्नता के लिए मनुष्य मनाते हैं । यह सिद्ध करता है कि नागों और मनुष्यों के बीच निश्चय ही एक गहरा सम्बन्ध आदिकाल से चला आ रहा है ।

ऋषियों ने देबरूप में नाग नागिनियों के साक्षातकार के लिए एक पूरी नागबिद्या बिकसित की थी जिसका आज प्राय: लोप ही हो गया है। नागबिद्या से रम्बन्धित पद्मिनी नागिनी (padmini nagini) के बिधान यहाँ प्रस्तुत हैं –

Padmini Nagini Mantra : “ॐ नमो पद्मिनी पूर्ब गुण मुख्यै नम: ।।”

परिचय : अमाबस्या को सायंकाल पूजन सामग्री के साथ किसी निर्जन में स्थित शिबालय अथबा नागों के स्थान पर जाकर शुद्धि कर संकल्प पढकर पद्मिनी नाग की नागिनी (padmini nagini) की निम्नबत् उपासना करनी चाहिए ।

बिधान : उक्त मंत्र से नागिनी की षोडशोपचार पूजा पूर्णामासी तक करे नित्य रात्रि में ५००० का जप करे तो मंत्र के प्रभाब से मूर्छित होती हुई नागिनी दिब्यरूप धारण करके साधक के सम्मुख उपस्थित होती है, भयभीत न होबे। आदर प्रेम से अर्घ्य देकर उसके पूछ्ने पर धन की सहायता की चायना करे । देबी नित्य १२ स्वर्ण मुद्राएं देती है । यही साधना एक माह तक करने पर १०० स्वर्ण मुद्राएं नित्य नागलोक से लाकर देती है ।