Medical Astrology

चर्म रोग और ज्योतिष :

चर्म रोग और ज्योतिष :

चर्म रोग : हमारा शरीर ग्रहों के अधीन है । हमारे शरीर के सभी अंगों की स्वस्थता एवं रोग का विचार ग्रहों की स्थिति से किया जाता है। शरीर की चमड़ी का कारक ग्रह बुध होता है । कुंडली में बुध की स्थिति से शरीर की चमड़ी की जानकारी प्राप्त होती है। कुंडली में बुध जितनी उत्तम अवस्था में होगा, जातक की चमड़ी उतनी ही चमकदार एवं स्वस्थ होगी। यदि कुंडली में बुध पाप ग्रह राहु, केतु या शनि के साथ किसी भी भाव में बैठा हो या दृष्टि से सम्बन्ध बन रहा हो तो चर्म रोग होने के पूरे आसार बनेंगे। इसमें रोग की तीव्रता ग्रह की प्रबलता पर निर्भर करती है । उपरोक्त पापी ग्रह बुध कितनी डिग्री से पूर्ण दीप्तांशों में देखता है या नहीं । ग्रह किस नक्षत्र में कितना प्रभावकारी है यह भी रोग की भीषणता बताता है क्योंकि एक रोग सामान्य सा उभरकर आता है और ठीक हो जाता है । दूसरा रोग लंबा समय लेता है, साथ ही जातक के जीवन में चल रही महादशा पर भी निर्भर करता है । आइये जानते हैं ऐसे कुछ योगों के बारे में जो शरीर में जो

शरीर में चर्म रोग अवश्य देंगे :
यदि मंगल किसी भी तरह से पाप ग्रहों से ग्रस्त हो, नीच हो, शत्रु राशि हो या वक्री हो तो वह रक्त संबंधी रोग पैदा करेगा। यदि मंगल बुध का योग होगा तो रक्त या चार्म रोग की समस्या अवश्य खड़ी होगी।
यदि मंगल शनि का योग शरीर में खुजली पैदा करने के साथ साथ रक्त भी खराब करेगा।
यदि शनि पूर्ण बली होकर मंगल के साथ तृतीय स्थान पर हो तो जातक को खुजली का रोग होता है।
यदि मंगल और केतु छठे या बारहवें स्थान में हो तो चर्म रोग होता है।
यदि मंगल और शनि छठे या बारहवें भाव में हों तो व्रण (फोड़ा, छिद्र या घाव)) होता है।
यदि मंगल षष्ठेश के साथ हो तो चर्म रोग होता है।
यदि षष्ठेश शत्रुगृही, नीच, वक्री अथवा अस्त हो तो चर्म -रोग होता है।
यदि षष्ठेश पाप ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम स्थान में बैठा हो तो चर्म-रोग होता है।
यदि बुध और राहु षष्ठेश और लग्नेश के साथ हो तो चर्म-रोग होता है। यदि षष्टम भाव में कोई भी ग्रह नीच, शत्रुक्षेत्री, वेक्री अथवा अस्त हो तो भी चर्म रोग होता है।
यदि षष्ठेश पाप ग्रह के साथ हो तथा उस पर लग्नस्थ, अष्टमस्थ दशमस्थ पाप ग्रह की दृष्टि हो तो चर्म रोग होता है।
यदि शनि अष्टमस्थ और मंगल सप्त्मस्थ हो तो जातक को पंद्रह से तीस वर्ष की आयु में चेहरे पर फुंसी होती है।
यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र से सिर में छिद्र होते हैं।
यदि लग्नेश मंगल के साथ लग्नगत हो और उसके साथ पाप ग्रह हो अथवा पाप ग्रह की दृष्टि पड़ती हो तो पत्थर अथवा किसी शस्त्र के द्वारा सिर में व्रण (छिद्र या घाव) होता है।
यदि लग्नेश शनि के साथ लग्न में बैठा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो अथवा लग्न में और कोई भी पाप ग्रह हो तो जातक के सिर में चोट से या अग्नि से व्रण (छिद्र या घाव) होते हैं।
यदि षष्ठेश, राहु अथवा केतु के साथ लग्न में बैठा हो तो जातक के शरीर में व्रण (छिद्र या घाव) होता है ।

जन्मकुंडली और रोगों की तीव्रता

जन्मकुंडली और रोगों की तीव्रता :
रोगों के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान के साथ ही ज्योतिष विज्ञान के ग्रह एवं नक्षत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जन्म कुण्डली से इस बात को जानने में बहुत सहायता मिलती है कि व्यक्ति को कब , क्यों और किस प्रकार के रोगो की सम्भावना है । इसी प्रकार नक्षत्रों का भी रोग विचार करने में महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसमें रोग की अवधि और उसके ठीक होने के समय को भी जाना जा सकता है। जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में लग्न (देह), चतुर्थेश (मन) और पंचमेश (आत्मा) इन तीनों की स्थिति अच्छी होती है, वह सदैव स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल अग्नि तत्व का, बुध पृ्थ्वी तत्व का, बृ्हस्पति आकाश तत्व का, शुक्र जल तत्व का और शनिश्चर वायु तत्व के प्रतिनिधि हैं । मनुष्य के शरीर में इन तत्वों की कमी अथवा वृ्द्धि का कारण तात्कालिक ग्रह स्थितियों के आधार पर जानकर ही कोई भी विद्वान ज्योतिषी भविष्य में होने वाले किसी रोग-व्याधि का बहुत ही आसानी से पता लगा लेता है। क्यों कि इन पंचतत्वों का असंतुलन एवं विषमता ही शारीरिक रोग-व्याधी को जन्म देता है ।

जन्म कुंडली के भावों, राशियों, नक्षत्रों तथा ग्रहों एवं विशिष्ट समय पर चल रही दशाओं का संपूर्ण अध्यन करके शरीर पर रोग का स्थान एवं प्रकृति, निदान तथा रोग का संभावित समय एवं तीव्रता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ।
ज्योतिष द्वारा रोग निदान की विद्या को चिकित्सा ज्योतिष भी कहा जाता है। इसे मेडिकल ऍस्ट्रॉलॉजी (Medical Astrology) कहा जा सकता है। यदि समय रहते इनका चिकित्सकीय एवं ज्योतिषीय उपचार दोनों कर लिए जाएं तो इन्हें घातक होने से रोका जा सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में 12 भाव/राशियां, 9 ग्रह व 27 नक्षत्र अपनी प्रकृति एवं गुणों के आधार पर व्यक्ति के अंगों और बीमारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सामान्यतः जन्म कुंडली में जो राशि अथवा जो ग्रह छठे, आठवें, या बारहवें स्थान से पीड़ित हो अथवा छठे, आठवें, या बारहवें स्थानों के स्वामी हो कर पीड़ित हो, तो उनसे संबंधित बीमारी की संभावना अधिक रहती हैं। कुंडली अनुसार संभावित रोग का समय और प्रकार और कारण….
1- ज्योतिष के अनुसार किसी रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष में पाप ग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप प्रभाव, पाप ग्रहों के नक्षत्र में उपस्थिति एवं रोग कारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर, पाप ग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है।
2- रोग कारक ग्रह जब गोचर में जन्मकालीन स्थिति में आते हैं और अंतर-प्रत्यंतर दशा मं् इनका समय चलता है तो उसी समय रोग उत्पन्न होता है।
3- कुंडली में मौजूद कौन-सा ग्रह, कौन-सी स्थिति में है। इससे तय होता है का स्वास्थ्य कैसा होगा। अलग – अलग ग्रहों का असर भी अलग – अलग होता है।
4- यदि कुंडली में सूर्य, चंद्र, शनि, मंगल ग्रह विशेष भावों में राहु-केतु से पीड़ित होते हैं तभी नकारात्मक तंत्र-मंत्र व्यक्ति पर असर डालते हैं।
5- यदि षष्ठेश चर राशि में तथा चर नवांश में स्थित होते हैं तो रोग की अवधि छोटी होती है। द्विस्वभाव में स्थित होने पर सामान्य अवधि होती है। स्थिर राशि में होने पर रोग दीर्घकालीन होते हैं।
6- ज्योतिष में चंद्रमा मन के कारक हैं। लग्न शरीर का प्रतीक है तथा सूर्य आत्मा, जन्मजात रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारक हैं अत: चंद्रमा, सूर्य एवं लग्नेश के बली होने पर व्यक्ति आरोग्य का सुख भोगता है।
7- राशियों ग्रह तथा नक्षत्रों का अधिकार क्षेत्र शरीर के विभिन्न अंगों पर है इसके अतिरिक्त कुछ रोग, ग्रह अथवा नक्षत्र की स्वाभाविक प्रकृति के अनुसार जातक को कष्ट देते हैं ।
8- कुंडली में षष्ठम भाव को रोग कारक व शनि को रोग जन्य ग्रह माना जाता है। शरीर में कब, कहां, कौन सा रोग होगा वह इसी से निर्धारित होता है। यहां पर स्थित क्रूर ग्रह पीड़ा उतपन्न करता है । उस पर यदि शुभ ग्रहो की दृष्टि न हो तो यह अधिक कष्टकारी हो जाता है ।
9- यदि षष्ठेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश तथा रोग कारक ग्रह अशुभ तारा नक्षत्रों में स्थित होते हैं तो रोग की चिकित्सा निष्फल रहती है ।
ग्रहो से संबंधित रोगों – यदि कुंडली में ये ग्रह छठे भाव के स्वामी के साथ सम्बंध बनायें, और उनकी दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा आये है तो उसी समय उस दशानाथ से सम्बंधित बीमारी जन्म लेती है।
जानिए किस ग्रह के कारण कौन सा रोगों होता है..?? सूर्य – हड्डी का रोगों , मुँह से झाग निकलना, रक्त चाप, पेट की दिक़्क़त
चंद्रमा – मानसिक तनाव, माइग्रेन, घबराहट, आशंका की बीमारी
मंगल – रक्त सम्बंधी समस्या, उच्च रक्तचाप, कैंसर, वात रोगों , गठिया, बनासीर, आंव
बुध – दंत सम्बंधी बीमारी, हकलाहट, गुप्त रोगों , त्वचा की बीमारी, कुष्ट रोगों , चेचक, नाड़ी की कमजोरी
गुरु (बृहस्पति) – पेट की गैस, फेफड़े की बीमारी, यकृत की दिक़्क़त, पीलिया
शुक्र – शुक्राणुओं से सम्बंधित , त्वचा, खुजली, मधुमेह
शनिश्चर – कोई भी लम्बी चलने वाली बीमारी जैसे एड्स, कैंसर आदि
राहू – बुखार , दिमाग़ी बिमारी, दुर्घटना आदि
केतू – रीढ़, स्वप्नदोष, कान, हार्निया
जन्म कुंडली में रोगों उत्पन करने वाले ग्रहो के निदान के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, हवन( यज्ञ ), यंत्र एवं विभिन्न प्रकार के दान आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है । कुशल ज्योतिषी की सलाह पर बीमारी से सम्बंधित भाव , भावेश तथा कारक ग्रह से सम्बंधित ज्योतिषीय उपाय करते हुए रोगों के प्रभाव को कम किया जा सकता है ।

यौन रोग और ज्योतिष :

यौन रोग और ज्योतिष :

मनुष्य का वर्तमान जीवन उनके पूर्व जन्म के कार्मों पर निर्भर करता है। अपने कार्मों के कारण ही मनुष्य को सुख-दुख, रोग और मृत्यु की प्राप्ति होती है। व्यक्ति का जैसा कर्म होता है उसी अनुसार जन्म के समय उनकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति बनती है और उनसे व्यक्ति जीवन भर प्रभावित होता है। हृदय रोग, कैंसर, एड्स और यौन रोग के लिए भी उनके कर्म और ग्रहों की स्थिति जिम्मेदार होती है। प्राचीन काल में चिकित्सक रोगी का उपचार करते समय उनकी जन्मपत्री भी देखते थे और उसके अनुसार जड़ी-बूटी, तंत्रमंत्रों का प्रयोग करते थे। ज्योतिष में यौन रोग की चर्चा करते हुए बताया गया है कि वृश्चिक राशि का प्रभाव व्यक्ति के गुप्तांग पर होता है। कुंडली में अगर वृश्चिक राशि दूसरे, छठे, आठवें या बारहवें घर में हो और इन पर अशुभ ग्रहों प्रभाव हो तब व्यक्ति को यौन और गुप्त रोग होने की आशंका रहती है। लेकिन इस रोग का एक मात्र कारण यही नहीं है। कुछ दूसरे ग्रह भी हैं जो इस रोग के लिए जिम्मेदार होते हैं।

जन्मकुंडली में आठवां घर और उस घर के स्वामी ग्रह के साथ शुक्र, मंगल, शनि, राहु का संबंध एड्स रोग की आशंका को जन्म देता है। दी गई कुंडली में आठवें घर में शनि के साथ राहु भी बैठें है और आठवें घर के स्वामी मंगल को देख रहे हैं। इसके अलावा शनि और राहु की दृष्टि शुक्र, केतु, मंगल और सूर्य पर है। ग्रहों की यह स्थिति यौन संक्रमण और मृत्यु योग को दर्शाता है। जन्मपत्री के सातवें घर में शनि, राहु का संबंध हो और सप्तेश पर इन दोनों ग्रहों की दृष्टि होने पर पुरुष में शुक्र की कमी होती है जिससे संतानोत्पत्ति में बाधा आती है। दी गई कुंडली में शुक्र सातवें घर का स्वामी है और सातवें घर में शनि राहु बैठे हैं जो लग्न स्थान में शुक्र को देख रहे हैं। वृश्चिक राशि को यौन रोग देने वाला माना गया है । इस कुंडली में शुक्र के साथ वृश्चिक लग्न के स्वामी मंगल पर भी शनि राहु की दृष्टि है जो नपुंसकता का योग बना रहे हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली के सातवें घर में शनि राहु बैठे हों, सातवें घर का स्वामी पर शनि राहु की दृष्टि हो या शनि के साथ नीच का शुक्र हो तब पुरुषों में शुक्र की कमी होती है। स्त्री की कुंडली में ऐसा योग होने पर गर्भाशय में परेशानी रहती है जिससे संतान प्राप्ति में परेशानी आती है। दी गई कुंडली में शुक्र शनि और राहु के साथ सातवें घर में बैठा जो इस तरह के योग का निर्माण कर रहा है।

उपाय : – शुक्र ग्रह के मंत्र (ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:) जप से भी यौन रोग में लाभ मिलता है।

स्किन प्रोब्लम का कारण हें : कमजोर बुध एवं केतु

स्किन प्रोब्लम का कारण हें : कमजोर बुध एवं केतु स्किन प्रोब्लम रोग: —-बुध तरह-तरह से एलर्जी और स्किन प्रोब्लम उत्पन्न करते हैं । स्किन प्रोब्लम केतु भी उत्पन्न करते हैं । बुध रसायनों से स्किन प्रोब्लम देते हैं और केतु बैक्टीरिया के कारण स्किन प्रोब्लम उत्पन्न करते हैं । केतु खुद भी सूक्ष्मकाय हैं और सूक्ष्म जीवों के देवता हैं । इन दोनों की दशा- अन्तर्दशाओं में स्किन प्रोब्लम उभर कर सामने आते हैं । दाद, खुजली, एग्जिमा, त्वचा का जल जाना, त्वचा पर रिंकल्स और त्वचा का जवान या बूढ़ा होना बुध या केतु पर निर्भर करता है । त्वचा पर ग्लेज है या नहीं, यह तय करने में और ग्रह भी भूमिका अदा करते हैं जिनमें बृहस्पति भी हो सकते हैं । अब यदि आप एंटी एजिंग क्रीम लगाएं और बुध या केतु आपकी मदद नहीं करें तो वह क्रीम लगाना बेकार हो जाएगा । अगर इन ग्रहों की पूजा-पाठ कर सकें या उनका रत्न पहन सकें तो एंटी एजि क्रीम की आवश्यकता ही बहुत कम प़डेगी ।

एक और तथ्य है जिसका आयुर्वेद भी समर्थन करता है। यदि हम शाक-सब्जी के अलावा ऎसी ज़डी बूटियों का प्रयोग करें जो केतु या बुध की कृपा से उत्पन्न होती हैं तो स्किन प्रोब्लम की समस्याएं अपने आप ही दूर हो जाएंगी । आप देखेंगे कि जिनके लग्न से या लग्नेश से बुध या केतु का संबंध होता है तो उनको एंटी एजिंग क्रीम या अन्य त्वचा प्रसाधनों की इतनी आवश्यकता नहीं प़डेगी, पर वही केतु अगर दूसरे भाव में बैठकर खराब हो जाए तो वह व्यक्ति कम उम्र का होकर भी अधिक उम्र वाला दिखेगा। यदि मंगल का लग्न और लग्नेश से संबंध हो जाए तो व्यक्ति अपने आप ही मॉर्निग वॉक करता है, कसरत करता है, खेलों में शामिल रहता है और उसका खान-पान इतना परिष्कृत हो जाता है कि वह उम्र से कम दिखने लगता है। जो लोग रेगुलर मॉर्निग वॉकर होते हैं वे अपनी उम्र से दस-पन्द्रह वर्ष कम दिखते हैं और मॉर्निग वॉकर बनाने में मंगल सबसे अव्वल है । यदि कुण्डली मे मंगल बलवान हों तो भी वही परिणाम आते हैं अन्यथा मंगल की प्रसन्नता के लिए मंत्र और औषधि का प्रयोग किया जाना उचित रहेगा।

सन स्ट्रोक, सन बर्न : —गर्मी में जन्मे व्यक्ति, खासतौर से मिथुन राशि के सूर्य मे जन्मे व्यक्ति अपना हाथ या चेहरा दोपहर के सूर्य के सामने कुछ मिनटों के लिए भी कर दें तो उनकी त्वचा पर धब्बे प़ड जाते हैं या त्वचा काली प़ड जाती है । ये व्यक्ति यदि अपने हाथों को ढककर रखें तो इस समस्या से बच सकते हैं । आप पाएंगे कि सर्दियों में इन लोगों के हाथ या चेहरा गोरा हो जाता है और गर्मियों मे काला प़ड जाता है ।

बुध की राशियों में सूर्य हों या बुध अस्त हों या बुध वक्री हों या बुध, केतु के साथ हों तो स्किन प्रोब्लम की समस्या आती है और सूर्य देवता उसमें सहयोग दे देते हैं परन्तु अग्निकाण्ड मे शरीर जल जाता है । उसमें सूर्य केवल त्वचा पर असर नहीं डालते वरन् सारे शरीर को और रक्त मांस-मज्जा को भी झुलसा देते हैं ।

सूर्य-मंगल युति अक्सर अग्नि से दाह पैदा करती है । अग्नि से झुलसे हुए लोगों का साधारण उपायों से इलाज नहीं किया जा सकता और वह समय जन्मपत्रिकाओ के अधीन होता है। मोटापा,चर्बी व शारीरिक असंतुलन: बृहस्पति यदि वक्री हों या अस्त हों तो तेज गति से मोटापा देते हैं । बृहस्पति अच्छी राशियों में हों तो मोटापा अनियंत्रित रूप से नहीं बढ़ता बल्कि स्वाभाविक विकास के कारण होता है । थॉयरायड की समस्या में बृहस्पति का योगदान नहीं होता और उसके कारण जो मोटापा बढ़ता है, उसमें बुध का सहयोग होता है ।

गले के या वाणी के कारक बुध हैं । श्वास नली का गले वाला क्षेत्र बुध से प्रभावित होता है । जन्मपत्रिकाओं का दूसरा भाव श्वास नली के रोगों से संबंधित होता है परन्तु श्वास नली में कैंसर या ट्यूमर होता है तो उसका कारण शनि-मंगल या राहु होते हैं । साधारण ढंग से मोटापा जब बढ़ता है तो बृहस्पति का पूजा पाठ, बृहस्पतिवार का व्रत इत्यादि मदद करते हैं । कई ज़डी-बूटियां ऎसी होती हैं जो बृहस्पति का शमन करती हैं । बृहस्पति चेहरे पर ओज देते हैं । स्किन प्रोब्लम में भी बृहस्पति का योगदान होता है । चेहरे पर मेद बृहस्पति के कारण आता है । कई बार मोटापा और चेहरे पर कांति साथ-साथ बढ़ते हैं, फिर कांति स्थिर हो जाती है और मोटापा और भी ज्यादा बढ़ जाता है ।

चेहरे पर कांति से ब़डा कोई सौन्दर्य प्रसाधन हो ही नहीं सकता परन्तु केतु की तरह ही बृहस्पति भी उम्र से जल्दी बूढ़ा करा सकते हैं । रक्त दोष, पित्त: मंगल रक्त विकारों के ग्रह हैं । चेहरे पर लालिमा, बदन पर लालिमा, हाथों में गुलाबीपन, सुन्दर गुलाबी अंगुलियां और आंखों में नशा । साहसपूर्ण प्रतिमा, आत्मविश्वास और मुकाबले को तैयार भाव भंगिमा । यह सब मंगल की देन है ।

कमजोर बुध को ऐसे करें मजबूत : खुशबू और हरे रंग का इस्तेमाल करें । दुर्गन्ध से दूर रहें । ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादा न करें । खाने में ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियों खाएं । छोटी उंगली में कांसे का छल्ला पहनें । विष्णु भगवान या श्री कृष्ण की उपासना करें । बुध मंत्र का जाप करना विशेष लाभकारी होता है । यह है बुध मंत्र – ‘ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः’.

रोज सुबह रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जाप करें । मंत्र जाप करते समय हरे कपड़े पहनना अच्छा होगा । विष्णु भगवान के सामने बैठकर मंत्र जाप करें । कम से कम तीन महीने तक रोज इस तरह मंत्र जाप करें ।

हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण और उपचार :

हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण और उपचार :
इंसान के जन्म से मृत्यु तक हृदय लगातार धड़कता रहता है । हृदय की यह गतिशीलता ही इंसान को सक्रिय बनाए रखती है । हृदय का पोषण रक्त और ऑक्सीजन के द्वारा होता है । हमारे शरीर को जीवंत बनाए रखने के लिए हृदय शरीर में लगातार रक्त का प्रवाह करता है । मनुष्य का हृदय एक दिन में लगभग एक लाख बार और एक मिनट में औसतन 60 से 90 बार धड़कता है । हृदय का काम शरीर में रक्त का प्रवाह करना है, इसलिए हृदय का स्वस्थ होना अति आवश्यक है । आपका हृदय जितना स्वस्थ होगा आपका जीवन उतना ही सुख पूर्वक गुजरेगा। हालांकि आजकल की भागती-दौड़ती जिंदगी में कई लोगों को हृदय से संबंधित रोग हो रहे हैं क्योंकि खुद के लिए भी अब लोगों के पास वक्त नहीं है । यही वजह है कि हृदय रोगों का कारण ज्यादातर अव्यवस्थित दिनचर्या या खराब खान-पान होता है, परंतु बहुत से ऐसे ज्योतिषीय कारण भी होते हैं जिनकी वजह से लोगों को हृदय से संबंधित रोग घेर लेते हैं । हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण—- आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएँगे कि हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण क्या हैं। इसके साथ ही हम आपको कुछ ऐसे ज्योतिषीय उपचार भी बताएंगे जिनकी मदद से आप हृदय रोगों से खुद को बचा सकते हैं ।

तो आइए अब विस्तार से जानते हैं हृदय रोग के ज्योतिषीय कारण और उनके उपचार:-
चतुर्थ, पंचम भाव और इन भावों के स्वामियों की स्थिति जैसा कि हम सब जानते हैं कि इंसान के शरीर में हृदय बायीं ओर होता है और यह शरीर का वह अंग है जो रक्त को पूरे शरीर में पहुंचाता है । अब अगर ज्योतिष शास्त्र के नजरिये से देखा जाए तो कुंडली में स्थित बारह राशियों में से चतुर्थ राशि यानि कर्क राशि को हृदय का स्थान और पंचम राशि सिंह को इसके सूचक के रुप में देखा जाता है। हृदय से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए जातक की कुंडली में चतुर्थ, पंचम भाव और इन भावों के स्वामियों की स्थिति पर विचार किया जाता है ।

चौथे और पांचवे भावाें के स्वामियों पर यदि अशुभ ग्रहों की दृष्टि है या वो अशुभ ग्रहों के साथ हैं तो हृदय से जुड़े रोग हो सकते हैं । कुंडली में सूर्य की स्थिति ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य को हृदय का कारक माना जाता है । आपकी जन्म कुंडली में सूर्य का संबंध मंगल, शनि अथवा राहु-केतु के अक्ष में होने पर जातक को हृदय संबंधी विकार होते हैं । सूर्य अगर किसी नीच राशि में स्थित हो तो भी हृदय रोग हो सकते हैं । अगर सूर्य आपकी कुंडली में षष्ठम, अष्टम और द्वादश भावों के स्वामियों से संबंध बना रहा है तो हृदय विकार होने की पूरी संभावना रहती है । इसके अलावा सूर्य के पाप कर्तरी योग में होने पर भी हृदय से जुड़े रोग होते हैं । पाप कर्तरी योग कुंडली में तब बनता है जब किसी भाव के दोनों ओर पाप ग्रह स्थित हों । सिंह राशि के पीड़ित होने पर जिस जातक की कुंडली में सिंह राशि पीड़ित होती है अथवा उस पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है तो जातक को हृदय रोग घेर सकते हैं । इसके साथ ही कुंडली के चतुर्थ और पंचम भाव के पीड़ित होने अथवा उन पर नैसर्गिक पाप ग्रहों अथवा त्रिक (6-8-12) भाव के स्वामी ग्रह का प्रभाव होने पर भी हृदय से जुड़ी परेशानियां आ सकती हैं । चतुर्थ, पंचम भावों के स्वामियों के दूषित होने पर चतुर्थ, पंचम भावों के स्वामी यदि अशुभ ग्रहों से युति बनाकर दूषित हो रहे हैं तो भी हृदय रोग होने की संभावनाएं रहती हैं ।

यदि चतुर्थ, पंचम भावों के स्वामी तीव्र गति से चलने वाले ग्रहों से दूषित हो रहे हैं तो रोग ज्यादा दिन तक नहीं चलता या रोग बहुत गंभीर नहीं होता । वहीं अगर चतुर्थ, पंचम भाव धीमे चलने वाले ग्रहों से दूषित है तो रोग लंबे समय तक चल सकता है और रोग गंभीर भी हो सकता है । उपरोक्त ग्रह स्थिति होने पर इन ग्रहों की दशा और अंतर्दशा के दौरान हृदय रोग की संभावना बनी रहती है । इसलिए ऐसे जातकों को ग्रहों की दशा और अंतर्दशा के दौरान सावधान रहना चाहिए । सूर्य ग्रह को प्रबल करने के लिए सूर्य ग्रह की शांति के उपाय हृदय रोग के ज्योतिषीय उपचार करे । ज्योतिष शास्त्र की मदद से आप आने वाली मुश्किलों का भी पहले ही आकलन कर सकते हैं और जिन समस्याओं से आप जूझ रहे हैं उनका भी हल पा सकते हैं ।

हृदय रोग से जुड़े ज्योतिषीय उपचार :- सूर्य को जल चढ़ाएँ हृदय को स्वस्थ रखने के लिए आपकी कुंडली में सूर्य का अनुकूल अवस्था में होना बहुत जरूरी है । यदि आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति अनुकूल नहीं है तो आपको प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल भरकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए ।

आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी आपको हृदय से जुड़े विकारों को दूर करने में मदद मिलेगी ।

हृदय रोगों से बचने के लिए आपको अपनी कुंडली के चतुर्थ और पंचम भाव के स्वामी ग्रहों को जानकर उनको मजबूत करना चाहिए। इसके लिए आप उन ग्रहों के बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं।

हृदय रोगों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य देव के बीज मंत्र का नियमित पाठ करना भी लाभकारी होता है । सूर्य का बीज मंत्र नीचे दिया गया है: “मंत्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः”
अपने इष्ट देव की पूजा अर्चना करना भी आपके लिए शुभ फलदायी रहता है और इससे हृदय से जुड़ी परेशानियां दूर हो जाती हैं । लेकिन आपको इस बात का ख़ास ख्याल रखना है कि इष्ट देव की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाए। इसमें किसी भी तरह की चूक न हो । इसके अतिरिक्त श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करें अथवा भगवान विष्णु की उपासना करें । श्वेतार्क वृक्ष लगाएँ और उसको जल से सिंचित करें इससे आपको लाभ होगा । यह वृक्ष हृदय रोगों को दूर करता है !